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________________ ३०८ प्रज्ञापना सूत्र ***************************** ***************************************** ************* अपजत्तगा असंखिज्ज गुणा, बायर वणस्सइकाइया अपज्जत्तगा अणंत गुणा, बायर अपज्जत्तगा विसेसाहिया॥१६३॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! अपर्याप्तक बादर पृथ्वीकायिकों, बादर अप्कायिकों, बादर तेजस्कायिकों, बादर वायुकायिकों, बादर वनस्पतिकायिकों, प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिकों, बादर निगोदों और बादर त्रसकायिकों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े अपर्याप्तक बादर त्रसकायिक हैं, उनसे अपर्याप्तक बादर तेजस्कायिक असंख्यात गुणा हैं, उनसे अपर्याप्तक प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक असंख्यात गुणा हैं, उनसे अपर्याप्तक बादर निगोद असंख्यात गुणा हैं, उनसे अपर्याप्तक बादर पृथ्वीकायिक असंख्यात गुणा हैं, उनसे अपर्याप्तक बादर अप्कायिक असंख्यात गुणा हैं, उनसे अपर्याप्तक बादर वायुकायिक असंख्यात गुणा हैं, उनसे अपर्याप्तक बादर वनस्पतिकायिक अनंत गुणा हैं, उनसे बादर अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में अपर्याप्तक बादर जीवों का दूसरा अल्पबहुत्व कहा गया है - सबसे थोड़े अपर्याप्तक बादर त्रसकायिक हैं। इसका स्पष्टीकरण पूर्व में दिया जा चुका है। उनसे अपर्याप्तक बादर तेजस्कायिक असंख्यात गुणा हैं क्योंकि वे असंख्यात लोकाकाश के प्रदेश प्रमाण हैं। इसी प्रकार पहले कहे गये क्रम से यह अल्प बहुत्व भी समझना चाहिए। एएसिणं भंते! बायर पजत्तगाणं बायर पुढवीकाइय पजत्तगाणं बायर आउकाइय पजत्तगाणं बायर तेउकाइय पज्जत्तगाणं बायर वाउकाइय पजत्तगाणं पत्तेयसरीर बायर वणस्सइकाइय पज्जत्तगाणं बायर णिओय पज्जत्तगाणं बायर तसकाइय पज्जत्तगाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा बायर तेउकाइया पज्जत्तगा, बायर तसकाइया पज्जत्तगा असंखिज्ज गुणा, पत्तेयसरीर बायर वणस्सइकाइया पजत्तगा असंखिज्ज गुणा, बायर णिआंया पज्जत्तगा असखिज्ज गुणा, बायर पुढवीकाइया पज्जत्तगा असखिज्ज गुणा, बायर आउकाइया पज्जत्तगा असंखिज्ज गुणा, बायर वाउकाइया पज्जत्तगा असंखिज गुणा, बायर वणस्सइकाइया पजत्तगा अणंत गुणा, बायर पजत्तगा विसेसाहिया॥१६४॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पर्याप्तक बादर जीवों, बादर पृथ्वीकायिकों, बादर अप्कायिकों, बादर तेजस्कायिकों, बादर वायुकायिकों, प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिकों, बादर निगोदों और बादर त्रसकायिकों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषधिक हैं ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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