SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 319
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०६ प्रज्ञापना सूत्र गोयमा! सव्वत्थोवा बायर तसकाइया, बायर तेउकाइया असंखिज्जगुणा, पत्तेयसरीर बायर वणस्सइकाइया असंखिज्जगुणा, बायर णिओया असंखिज्जगुणा, बायर पुढवीकाइया असंखिज्जगुणा, बायर आउकाइया असंखिज्जगुणा, बायर वाउकाइया असंखिज्जगुणा, बायर वणस्सइकाइया अनंतगुणा बायरा विसेसाहिया ॥ १६२॥ - भावार्थ- प्रश्न हे भगवन्! इन बादर जीवों, बादर पृथ्वीकायिकों, बादर अप्कायिकों, बादर तेजस्कायिकों, बादर वायुकायिकों, बादर वनस्पतिकायिकों, प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिकों, बादर निगोदों और बादर त्रसकायिकों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े बादर त्रसकायिक हैं, उनसे बादर तेजस्कायिक असंख्यात गुणा हैं, उनसे प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकाय असंख्यात गुणा हैं, उनसे बादर निगोद असंख्यात गुणा हैं, उनसे बादर पृथ्वीकायिक असंख्यात गुणा हैं, उनसे बादर अप्कायिक असंख्यात गुणा हैं, उनसे बादर वायुकायिक असंख्यात गुणा हैं, उनसे बादर वनस्पतिकायिक अनंत गुणा हैं, उनसे बादर जीव विशेषाधिक हैं। विवेचन - सूक्ष्म जीवों की अल्पबहुत्व कहने के बाद सूत्रकार बादर जीवों की अल्पबहुत्व कहते हैं। प्रस्तुत सूत्र में सामान्य बादर जीवों का अल्पबहुत्व कहा गया है जो इस प्रकार है - सबसे थोड़े सकायिक हैं क्योंकि बेइन्द्रिय आदि जीव ही बादर त्रस हैं और वे शेष पृथ्वीकाय आदि से थोड़े हैं। उनसे बाद तेजस्कायिक असंख्यात गुणा हैं क्योंकि वे असंख्यात लोकाकाश के प्रदेश प्रमाण हैं । उनसे प्रत्येक शरीरी बादर वनस्पतिकायिक असंख्यात गुणा हैं क्योंकि उनका स्थान असंख्यात गुणा हैं. जबकि बादर तेजस्कायिक तो मनुष्य क्षेत्र में ही हैं। इस संबंध में दूसरे स्थान पद में इस प्रकार के प्रश्नोत्तर आये हैं यथा - Jain Education International ************** प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्तक बादर तेजस्कायिकों के स्थान कहाँ कहे गये हैं ? उत्तर - हे गौतम! स्वस्थान से मनुष्य क्षेत्र में अर्थात् अढाईद्वीप और दो समुद्रों में निर्व्याघात के अभाव में अर्थात् बीच में किसी प्रकार की रुकावट न होने पर पन्द्रह कर्मभूमि में और व्याघात की अपेक्षा पांच महाविदेह में पर्याप्त बादर तेजस्कायिकों के स्थान कहे गये हैं। जहाँ पर्याप्तक बादर तेजस्कायिकों के स्थान हैं वहीं अपर्याप्तक बादर तेजस्कायिकों के स्थान हैं और बादर वनस्पतिकायिक तो तीनों लोक में भवन आदि में हैं इस विषय में दूसरे स्थान पद में इस प्रकार का वर्णन आया है प्रश्न - हे भगवन् ! बादर वनस्पतिकायिकों के स्थान कहाँ कहे गये हैं ? - उत्तर - हे गौतम! स्वस्थान की अपेक्षा सात घनोदधि में, सात घनोदधिवलयों में, अधोलोक मेंपाताल कलशों में, भवनों में, भवन प्रस्तटों में, ऊर्ध्वलोक में विमानों में, विमानावलिकाओं में, - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy