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________________ २९६ प्रज्ञापना सूत्र ******************** *************************************************************** क्योंकि वे प्रचुरतर असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण है, उनसे वायुकायिक विशेषाधिक है क्योंकि वे प्रचुरतम असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण है, उनसे अकायिक-काया रहित अनंत गुणा है क्योंकि सिद्ध अनंत हैं उनसे वनस्पतिकायिक अनन्तगुणा है क्योंकि वे अनंत लोकाकाश प्रदेश प्रमाण हैं। उनसे सकायिक विशेषाधिक हैं क्योंकि उनमें पथ्वीकायिक आदि सभी कायों का समावेश है। एएसि णं भंते! सकाइयाणं पुढविकाइयाणं आउकाइयाणं तेउकाइयाणं वाउकाइयाणं वणस्सइकाइयाणं तसकाइयाणं अपजत्तगाणं कयरे कयरेहितो अप्या वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? । गोयमा! सव्वत्थोवा तसकाइया अपजत्तगा, तेउकाइया अपजत्तगा असंखिज गुणा, पुढविकाइया अपजत्तगा विसेसाहिया, आउकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, वाउकाइया अपजत्तगा विसेसाहिया, वणस्सइकाइया अपजत्तगा अणंत गुणा, सकाइया अपजत्तगा विसेसाहिया॥१५३॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! अपर्याप्तक सकायिक, पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और त्रसकायिक में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े अपर्याप्तक त्रसकायिक हैं, उनसे अपर्याप्तक तेजस्कायिक असंख्यात गुणा हैं, उनसे अपर्याप्तक पृथ्वीकायिक विशेषाधिक हैं, उनसे अपर्याप्तक अप्कायिक विशेषाधिक हैं, उनसे अपर्याप्तक वायुकायिक विशेषाधिक हैं, उनसे अपर्याप्तक वनस्पतिकायिक अनंत गुणा हैं, उनसे अपर्याप्तक सकायिक विशेषाधिक हैं। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में अपर्याप्तक सकायिक आदि जीवों का अल्पबहुत्व कहा गया है। - एएसि णं भंते! सकाइयाणं पुढविकाइयाणं आउकाइयाणं तेउकाइयाणं वाउकाइयाणं वणस्सइकाइयाणं तसकाइयाणं पजत्तगाणं कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा तसकाइया पजत्तगा, तेउकाइया पजत्तगा असंखिज गुणा, पुढविकाइया पजत्तगा विसेसाहिया, आउकाइया पजत्तगा विसेसाहिया, वाउकाइया पजत्तगा विसेसाहिया, वणस्सइकाइया पजत्तगा अणंत गुणा, सकाइया पजत्तगा विसेसाहिया॥१५४॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पर्याप्तक सकायिक, पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और त्रसकायिक में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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