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________________ २९४ प्रज्ञापना सूत्र * * * * * * * * RAHARI उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय पर्याप्तक हैं उनसे पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक असंख्यात गुणा हैं। विवेचन - पर्याप्तक और अपर्याप्तक जीवों का अल्पबहुत्व - सबसे थोड़े सइन्द्रिय अपर्याप्तक जीव हैं क्योंकि सइन्द्रिय जीवों में एकेन्द्रिय जीव अधिक हैं उनमें भी सूक्ष्म एकेन्द्रिय ज्यादा हैं क्योंकि वे सर्व लोक में व्याप्त हैं किन्तु उनमें सूक्ष्म अपर्याप्तक थोड़े हैं उनसे पर्याप्तक संख्यात गुणा अधिक हैं। इसी प्रकार एकेन्द्रिय अपर्याप्तक सबसे कम और पर्याप्तक संख्यात गुणा हैं। बेइन्द्रिय पर्याप्तक सबसे थोड़े हैं क्योंकि वे प्रतर अंगुल के संख्यात भाग मात्र खण्ड प्रमाण हैं उनसे बेइन्द्रिय अपर्याप्तक असंख्यात गुणा हैं क्योंकि वे प्रतर अंगुल के असंख्यात भाग मात्र खण्ड प्रमाण होते हैं इसी प्रकार तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीवों के पर्याप्तकों और 'अपर्याप्तकों का अल्पबहुत्व समझना चाहिए। ___ एकेन्द्रिय में दो भेद हैं - बादर एकेन्द्रिय और सूक्ष्म एकेन्द्रिय। बादर एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय। इन सब में पर्याप्तक थोड़े हैं और अपर्याप्तक अधिक हैं। किन्तु सिर्फ सूक्ष्म एकेन्द्रिय में इससे विपरीत है। अर्थात् सूक्ष्म एकेन्द्रिय में अपर्याप्तक थोड़े हैं और पर्याप्तक उनसे अधिक हैं। एएसि णं भंते! सइंदियाणं, एगिंदियाणं, बेइंदियाणं, तेइंदियाणं, चउरिदियाणं, पंचिंदियाणं पजत्तापजत्तगाणं कयरे कयरेहितो अप्या वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा चउरिदिया पजत्तगा, पंचिंदिया पजत्तगा विसेसाहिया, बेइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, तेइंदिया पजत्तगा विसेसाहिया, पंचिंदिया अपजत्तगा असंखिज गुणा, चउरिदिया अपजत्तगा विसेसाहिया, तेइंदिया अपजत्तगा विसेसाहिया, बेइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, एगिंदिया अपज्जत्तगा अणंत गुणा, सइंदिया अपजत्तगा विसेसाहिया, एगिंदिया पजत्तगा संखिज गुणा, सइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, सइंदिया विसेसाहिया॥३ इंदिय दारं॥१५१॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पर्याप्तक और अपर्याप्तक सइन्द्रिय, एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीवों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? उत्तर - हे गौतम! सब से थोड़े चउरिन्द्रिय पर्याप्तक हैं उनसे पंचेन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक हैं, उनसे बेइन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक हैं, उनसे तेइन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक हैं, उनसे पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक असंख्यात गुणा हैं, उनसे चउरिन्द्रिय अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं, उनसे तेइन्द्रिय अपर्याप्तक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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