SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 289
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७६ प्रज्ञापना सूत्र ************************************************* ********************************** दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा पुढवीकाइया दाहिणेणं, उत्तरेणं विसेसाहिया, पुरच्छिमेणं विसेसाहिया, पच्छिमेणं विसेसाहिया। दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा आउक्काइया पच्छिमेणं, पुरच्छिमेणं विसेसाहिया, दाहिणेणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया। दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा तेउक्काइया दाहिणुत्तरेणं, पुरच्छिमेणं संखेज्जगुणा, पच्छिमेणं विसेसाहिया। दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा वाउक्काइया पुरच्छिमेणं, पच्छिमेणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया, दाहिणेणं विसेसाहिया। दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा वणस्सइकाइया पच्छिमेणं, पुरच्छिमेणं विसेसाहिया, दाहिणेणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया॥१३८॥ भावार्थ - दिशाओं की अपेक्षा से सब से थोड़े पृथ्वीकायिक जीव दक्षिण दिशा में हैं, उनसे उत्तर . दिशा में विशेषाधिक हैं, उनसे पूर्व दिशा में विशेषाधिक हैं, उनसे पश्चिम दिशा में विशेषाधिक हैं। दिशाओं की अपेक्षा से सब से थोड़े अप्कायिक जीव पश्चिम दिशा में हैं, उनसे पूर्व में विशेषाधिक हैं, उनसे दक्षिण दिशा में विशेषाधिक हैं और उनसे उत्तर में विशेषाधिक हैं। दिशाओं की अपेक्षा से सब से थोड़े तेजस्कायिक जीव दक्षिण और उत्तरदिशा में हैं, उनसे पूर्व दिशा में संख्यात गुणा हैं, उनसे पश्चिम दिशा में विशेषाधिक हैं। दिशाओं की अपेक्षा से सब से थोड़े वायुकायिक जीव पूर्व दिशा में हैं, उनसे पश्चिम दिशा में विशेषाधिक हैं, उनसे उत्तर दिशा में विशेषाधिक हैं और उनसे दक्षिण दिशा में विशेषाधिक हैं। दिशाओं की अपेक्षा से सब से थोड़े वनस्पतिकायिक जीव पश्चिम दिशा में हैं, उनसे पूर्व दिशा में विशेषाधिक हैं, उनसे दक्षिण दिशा में विशेषाधिक हैं और उनसे उत्तर दिशा में विशेषाधिक हैं। विवेचन - १. पृथ्वीकायिक जीवों का अल्पबहुत्व - सबसे थोड़े पृथ्वीकायिक जीव दक्षिण दिशा में हैं क्योंकि जहां घन (ठोस) भाग है वहां पृथ्वीकायिक जीव अधिक होते हैं और जहां ठोस भाग कम है, छिद्र और पोलार है वहां पृथ्वीकायिक जीव थोड़े होते हैं। दक्षिण दिशा में बहुत से भवनपतियों के भवन और नरकावास हैं अत: वहां पोलार अधिक होने से पृथ्वीकायिक जीव थोड़े हैं। उनसे उत्तर दिशा में विशेषाधिक हैं क्योंकि उत्तर दिशा में दक्षिण दिशा की अपेक्षा थोड़े भवन और नरकावास हैं जिससे सघन भाग अधिक होने से पृथ्वीकायिक जीव भी अधिक हैं अतः विशेषाधिक कहे गये हैं। उनसे भी पूर्व दिशा में पृथ्वीकायिक जीव विशेषाधिक हैं क्योंकि वहां चन्द्र सूर्य के द्वीप Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy