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________________ प्रथम प्रज्ञापना पद - प्रस्तावना ३ ************************************************************************************ इसका अर्थ किया है - 'दृष्टिवादस्य-द्वादशाङ्गस्य निष्यन्द इव दृष्टिवादनिष्यन्दः।' अर्थात् दृष्टिवाद का निष्यन्द (रस, निचोड़, सार) भूत यह पण्णवणा सूत्र है। इसका अर्थ यह हुआ कि पण्णवणा सूत्र दृष्टिवाद से उद्धृत किया गया है। इस अपेक्षा से यह पण्णवणा सूत्र तीर्थंकर भगवन्तों की ही वाणी कही जा सकती है। प्रश्न - इस पण्णवणा सूत्र को किस महापुरुष ने उद्धृत किया है ? उत्तर - इस प्रश्न का समाधान इन दो गाथाओं में किया गया है - वायगवर वंसाओ तेईसइमेण धीर परिसेणं।। दुद्धरधरेण मुणिणा पुव्वसुयसमिद्ध बुद्धीण॥१॥ सुयसागरा विणेऊण जेण सुयरयणमुत्तमं दिण्णं। सीसगणस्स भगवओ तस्स णमो अजसामस्स ॥२॥ अर्थ - यद्यपि टीकाकार ने इन दो गाथाओं को अन्य कर्तृक (श्यामाचार्य से भिन्न किसी अन्य किसी महापुरुष के द्वारा बनाई हुई) माना है। तथापि इन दो गाथाओं का अर्थ आचार्य हरिभद्र और आचार्य मलयगिरि ने भी इस प्रकार किया है - दुर्धर (मुश्किलता से धारण करने योग्य) अर्थों को एवं पांच महाव्रतों को धारण करने वाले धैर्यवान्, पूर्वश्रुत से समृद्ध, बुद्धिमान वाचक वंश के अन्तर्गत तेईसवें धीर पुरुष ने श्रुतसागर से अर्थात् पूर्वो से उद्धृत करके शिष्यगण को दिया। उस भगवान् आर्य श्यामाचार्य के लिए नमस्कार हो। इस गाथा में आर्य श्यामाचार्य को नमस्कार किया गया है, इससे यह स्पष्ट होता है कि ये दोनों गाथाएँ दूसरे किसी व्यक्ति ने बनाई हुई है, श्यामाचार्य की नहीं। परन्तु इन गाथाओं पर से यह स्पष्ट होता है कि यह पण्णवणा सूत्र पूर्वो से उद्धृत है और इसके उद्धारकर्ता श्यामाचार्य हैं। पूज्य श्यामाचार्य के विषय में स्थानकवासी सम्प्रदाय के महान् आचार्य श्री पूज्य हस्तीमल जी म. सा. के द्वारा सम्पादित "जैन धर्म का मौलिक इतिहास" भाग २ पृष्ठ ४९६ में इस प्रकार उल्लेख मिलता है। यथा इतिहास के विशेषज्ञ मुनि कल्याणविजयजी ने भी आर्य श्याम को ही प्रथम कालकाचार्य माना है। "रत्नसंचय प्रकरण' के एतद्विषयक उल्लेख पर टिप्पण करते हुए मुनिजी ने लिखा है - "जहाँ तक हमने देखा है श्यामाचार्य नामक प्रथम कालकाचार्य का सत्ताकाल सर्वत्र वीर निर्वाण संवत् २८० में जन्म, ३०० में दीक्षा, ३३५ में युगप्रधानपद और ३७६ में स्वर्गगमन लिखा है।" पण्णवणा सूत्र के प्रारम्भ में आर्य श्याम की स्तुतिपरक उपरोक्त दो गाथाओं में श्यामाचार्य को वाचक वंश का २३ वाँ पुरुष बताया गया है। पर पट्टक्रमानुसार यह संख्या मेल नहीं खाती है क्योंकि आर्य सुधर्मा से आर्य श्याम पट्टपरम्परा में १२ वें आचार्य होते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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