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________________ ************** प्रथम प्रज्ञापना पद - पंचेन्द्रिय जीव प्रज्ञापना सेतं छेओवट्ठावणिय चरित्तारिया । प्रश्न - छेदोपस्थापनीय चारित्र आर्य कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर- छेदोपस्थापनीय चारित्र आर्य दो प्रकार के कहे गये हैं । यथा - १. सातिचार छेदोपस्थापनीय चारित्र आर्य और २. निरतिचार छेदोपस्थापनीय चारित्र आर्य। इस प्रकार छेदोपस्थापनीय चारित्र आर्य कहे गये हैं । से किं तं परिहारविसुद्धिय चरित्तारिया ? परिहारविसुद्धिय चरित्तारियां दुविहा पण्णत्ता । तं जहा - णिविस्समाण परिहारविसुद्धिय चरित्तारिया य णिविट्ठकाइय परिहार विसुद्धिय चरित्तारिया य । से तं परिहारविसुद्धियचरित्तारिया । प्रश्न- परिहार विशुद्धिक चारित्र आर्य कितने प्रकार के कहे गये हैं ? १४१ उत्तर - परिहार विशुद्धिक चारित्र आर्य दो प्रकार के कहे गये हैं । यथा १. निर्विश्यमानक परिहार विशुद्धि चारित्र आर्य २. निर्विष्टकायिक परिहार विशुद्धिक चारित्र आर्य। इस प्रकार परिहार विशुद्धि चारित्र आर्य कहे गये हैं । **米等分学等计学学报标 - Jain Education International से किं तं सुहुमसंपराय चरित्तारिया ? सुहुमसंपराय चरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता । तंजहा - संकिलिस्समाण सुहुम संपराय चरित्तारिया य विसुज्झमाण सुहुम संपराय चरित्तारिया । से तं सुहुमसंपराय चरित्तारिया । प्रश्न- सूक्ष्म संपराय चारित्र आर्य कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर - सूक्ष्म संपराय चारित्र आर्य दो प्रकार के कहे गये हैं - १. संक्लिश्यमान सूक्ष्मसंपराय चारित्र आर्य और २. विशुद्धयमान सूक्ष्म संपराय चारित्र आर्य। इस प्रकार सूक्ष्म संपराय चारित्र आर्य कहे गये हैं। For Personal & Private Use Only .से किं तं अहक्खायचरित्तारिया ? अहक्खाय चरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता । तंजा - छउमत्थ अहक्खाय चरित्तारिया य केवलि अहक्खाय चरित्तारिया य । से तं अहक्खाय चरित्तारिया । से तं चरित्तारिया । से त्तं अणिड्डिपत्तारिया से तं कम्मभूमगा । से तं गब्भवक्कंतिया । तं मस्सा ॥ ७७ ॥ प्रश्न - यथाख्यात चारित्र आर्य कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर - यथाख्यात चारित्र आर्य दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा- १. छद्मस्थ यथाख्यात चारित्र आर्य और २. केवल यथाख्यात चारित्र आर्य । इस प्रकार यथाख्यात चारित्र आर्य कहे हैं। इस प्रकार www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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