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________________ ९८ प्रज्ञापना सूत्र ************************************************************************************ इस प्रकार गण्डीपदा कहे गये हैं। इनके पैर सुनार की एरण की तरह चपटे होते हैं इन के पैर में खुर नहीं होते हैं। प्रश्न - सनखपदा कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर - सनखपदा अनेक प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं - सिंह, व्याघ्र, द्वीपिक, रीछ, तरक्ष (तेंदुआ), पाराशर, श्रृगाल (सियार) विडाल (बिल्ली), श्वान (कुत्ता), कोलश्वान (शिकारी कुत्ता), कोकंतिक (लोमडी), शशक (खरगोश), चीत्ता और चित्तलग (चिल्लक)। इसी प्रकार के अन्य जो भी प्राणी हैं उन्हें सनखपदा समझना चाहिए। इस प्रकार सनखपदा कहे गये हैं। इनके पैरों में नख होते हैं। इनके दान्तों की रचना भी दसरे तिर्यंचों की अपेक्षा भिन्न प्रकार की होती है। इसलिये सब तिर्यंचों में सिर्फ ये ही मांस भक्षी होते हैं। बाकी सब तिर्यंच घास-फूस खाकर . अपना जीवन निर्वाह करते हैं। वे सब शाकाहारी हैं। वे स्थलचर संक्षेप में दो प्रकार के कहे गये हैं - सम्मच्छिम और गर्भज। उनमें जो सम्मच्छिम हैं वे सब नपुंसक हैं। और उनमें जो गर्भज हैं वे तीन प्रकार के कहे हैं - स्त्री, पुरुष और नपुंसक। इस प्रकार पर्याप्त और अपर्याप्त स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों के दस लाख जाति कुलकोटि-योनि प्रमुख होते हैं। ऐसा कहा गया है। इस प्रकार स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों का वर्णन हुआ। से किं तं परिसप्प थलयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिया? परिसप्प थलयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिया दुविहा पण्णत्ता। तंजहा - उरपरिसप्प थलयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिया य भुयपरिसप्प थलयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिया य॥५२॥ भावार्थ - प्रश्न - परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर - परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं - उर:परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक और भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक। विवेचन - प्रश्न - उर:परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक किसे कहते हैं ? उत्तर - "उरसा परिसर्पन्ति" - "उरस" का अर्थ है छाती इसलिए जो छाती के बल से चलते हैं वे उर:परिसर्प और ऐसे सर्प आदि स्थलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीव, उर:परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक कहलाते हैं। प्रश्न - भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक किसे कहते हैं ? उत्तर - "भुजाभ्यां परिसर्पन्ति" - जो भुजाओं के बल से चलते हैं वे भुजपरिसर्प, ऐसे नेवले, गोह आदि स्थलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीव, भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक कहलाते हैं। से किं तं उरपरिसप्प थलयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिया? उरपरिसप्प थलयर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004093
Book TitlePragnapana Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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