SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 561
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१९० भगवती सूत्र-श. २४ उ. २४ वैमानिक देव का उपपात हिंतो उववज्जति ? ___ २२ उत्तर-एस चेव वत्तव्वया णिरवसेसा जाव 'अणुबंधो' त्ति । णवरं पढमं संघयणं, सेसं तहेव । भवादेसेणं जहण्णेणं तिण्णि भवग्गहणाई, उक्कोसेणं पंच भवग्गहणाई । कालादेसेणं जहण्णेणं एकतीसं सागरोवमाइं दोहिं वासपहुत्तेहिं अभहियाई, उक्कोसेणं छावहिं सागरोवमाइं तिहिं पुवकोडीहिं अब्भहियाई-एवइयं० । एवं सेसा वि अट्ठ गमगा भाणियव्वा । णवरं ठिई संवेहं च जाणेजा। मणूसे लद्धी णवसु वि गमएसु जहा गेवेज्जेसु उववजमाणस्स । णवरं पढमं संघयणं । ___भावार्थ-२२ प्रश्न-हे भगवन् ! विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देव कहां से आ कर उत्पन्न होते हैं ? २२ उत्तर-पूर्वोक्त वक्तव्यता यावत् अनुबन्ध पर्यन्त । यहाँ केवल प्रथम संहनन वाला ही उत्पन्न होता है, शेष पूर्ववत् । भवादेश से जघन्य तीन भव और उत्कृष्ट पांच भव, कालादेश से जघन्य दो वर्ष पृथक्त्व अधिक इक्कतीस सागरोपम और उत्कृष्ट तीन पूर्वकोटि अधिक ६६ सागरोपम तक यावत् गमनागमन करता है। शेष आठ गमक भी इसी प्रकार । स्थिति और संवैध इनका अपना जानना चाहिये। मनुष्य के नौ गमक में ग्रेवेयक में उत्पन्न होने वाले मनुष्य के समान । विशेषता यह कि विजय आदि में प्रथम संहनन वाला ही उत्पन्न होता है। २३ प्रश्न-सव्वट्टसिद्धगदेवा णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति ? २३ उत्तर-उववाओ जहेव विजयादीणं । जाव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy