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________________ भगवती सूत्र - श. २४ उ २३ ज्योतिषी देवों का उपपात ७ उत्तर - एस चैव वत्तव्वया । णवरं ओगाहणा जहण्णेणं धणुपुहुत्तं, उक्कोसेणं साइरेगाईं अट्ठारसधणुसयाई । टिई जहणेणं अनुभागपलिओवमं, उक्कोसेण वि अट्ठभागपलिओवमं । एवं अणुबंधोऽवि, सेसं तहेव । कालादेसेणं जहणेणं दो अट्टभागपलिओ वमाई, उक्कोसेण वि दो अनुभागपलिओ माई - एवइयं ० । जहण्णकालईस्स एस चेव एको गमो ६ । ३१७३ भावार्थ - ७ प्रश्न - हे भगवन् ! वे असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? ७ उत्तर - हे गौतम! पूर्वोक्त वक्तव्यतानुसार । अवगाहना जघन्य धनुष पृथक्त्व और उत्कृष्ट सातिरेक अठारह सौ धनुष । स्थिति और अनुबन्ध जघन्य और उत्कृष्ट पल्योपम के आठवें भाग, शेष पूर्ववत् । कालादेश से जघन्य और उत्कृष्ट पल्योपम के दो आठवें भाग । जघन्य काल की स्थिति वाले के लिये यह एक ही गमक होता है ६ । Jain Education International . ८ - सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठिईओ जाओ, सा चेक ओहिया बत्तव्वया । णवरं ठिई जहण्णेणं तिष्णि पलिओ माई, कोसे व तिष्ण पलिओमाई । एवं अणुबंधो वि. सेसं तं चैव । एवं पच्छिमा तिष्णि गमगा णेयव्वा । णवरं ठिडं संवेहं च जाणेजा। एए सत्त गमगा । भावार्थ - ८ - यदि वह असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी पंचेंद्रिय तिर्यंच, स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो और ज्योतिषों में उत्पन्न हो, तो For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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