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________________ शतक २४ उद्देशक २१ MARRARमनुष्य की विविध योनियों से उत्पत्ति १ प्रश्न-मणुस्सा णं भंते ! कओहिंतो उववजंति ? किं णेरइएहिंतो उववजंति, जाप देवेहितो उववजंति ? १ उत्तर-गोयमा ! णेरइएहितो वि उववनंति जाव देवेहितो वि उववज्जति-एवं उवषाओ जहा पंचिंदियतिरिक्खजोणियउद्देसए जाव 'तमापुढविणेरइएहितो वि उववजंति, णो अहेसत्तमपुढविणेरहए. हिंतो उववजंति।' भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! मनुष्य कहाँ से आ कर उत्पन्न होते हैं, क्या नैरयिक से यावत् देव से आ कर उत्पन्न होते हैं ? १ उत्तर-हे गौतम ! नरयिक यावत् देव से भी आ कर उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार पञ्चेन्द्रिय तियंव-योनिक उद्देशक के अनुसार उपपात जानना चाहिये, यावत् तमःप्रभा नाम की छठी पृथ्वी के नैरयिक से आ कर उत्पन्न होते हैं। अधःसप्तम पृथ्वी के नैरयिक से आ कर उत्पन्न नहीं होते। २ प्रश्न-रयणप्पभापुढविणेरइए णं भंते ! जे भविए मणुस्सेसु उववजित्तए से णं भंते ! केवइयकाल० ? २ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं मासपुहुत्तट्टिईएसु, उक्कोसेणं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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