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________________ ३१४८ भगवती सूत्र-श. २४ उ. २० पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की उत्पत्ति . ५४ प्रश्न-सोहम्मदेवे णं भंते ! जे भविए पंचिंदियतिरिवखजोणिएसु उववजित्तए, से णं भंते ! केवइ० ? ५४ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्त०, उक्कोसेणं पुव्वकोडीआउपसु, सेसं जहेव पुढविकाइयउद्देसए णवसु वि गमएसु । णवरं णवसु वि गमएसु जहण्णेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई । ठिई कालादेसं च जाणिज्जा, एवं ईसाणदेवे वि । एवं एएणं कमेणं अवसेमा वि जाव सहस्सारदेवेसु उववाएयव्वा । णवरं ओगाहणा जहा ओगाहणसंठाणे, लेस्सा-सणंकुमार-माहिंद-बंभलोएसु एगा पम्हलेस्सा, सेसाणं एगा सुकलेस्सा । वेए णो इत्थिवेयगा, पुरिसवेयगा, णो णपुंसगवेयगा। आउ-अणुबंधा जहा ठिई. पए, मेसं जहेव ईसाणगाणं कायसंवेहं च जाणेजा। ___® 'सेवं भंते ! सेवं भंते' ! त्ति । ॐ ॥ चउवीसइमे सए वीसइमो उद्देसो समत्तो ॥ भावार्थ-५४ प्रश्न-हे भगवन् ! सौधर्म देव, पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच में उत्पन्न हो, तो कितने काल की स्थिति में उत्पन्न होता है ? ५४ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि स्थिति वाले पञ्चेन्द्रिय तियंच में उत्पन्न होता है। शेष नौ गमक में पृथ्वीकायिक उद्देशक के अनुसार जानना चाहिये, परन्तु नौ गमक में संवेध-भवादेश से जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव होते हैं। स्थिति और कालादेश भिन्न-भिन्न जानना चाहिये। इसी प्रकार ईशान देव के विषय में भी जानना चाहिये-इसी क्रम से सहस्रार देव पर्यंत । अवगाहना प्रज्ञापना सूत्र के इक्कीसवें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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