SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 517
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१४६ भगवती सूत्र-श. २४ उ. २० पंचेन्द्रिय तियंचों की उत्पत्ति ४९ प्रश्न-जइ वाणमंतरेहितो० किं पिसाय० ? ४९ उत्तर-तहेव । जाव भावार्थ-४९ प्रश्न-यदि वह पंचेंद्रिय तियंच, वाणव्यन्तर से आ कर उत्पन्न होता है, तो क्या पिशाच वाणव्यन्तर से आ कर उत्पन्न होता है, इत्यादि ? ४९ उत्तर-पूर्ववत् । ५० प्रश्न-वाणमंतरे णं भंते ! जे भविए पंचिंदियतिरिक्ख ०? ५० उत्तर-एवं चेव, गवरं ठिई संवेहं च जाणेजा ९ । भावार्थ-५० प्रश्न-हे भगवन् ! वाणव्यन्तर देव, पंचेंद्रियतिथंच में उत्पन्न हो, तो वह कितने काल की स्थिति वाले पंचेंद्रिय तियंच में उत्पन्न होता है ? ५. उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् । स्थिति और संवेध उससे भिन्न जानना चाहिये। ५१ प्रश्न-जइ जोइसिय० ? ५१ उत्तर-उववाओ तहेव, जाव भावार्थ-५१ प्रश्न-यदि वह पंचेंद्रिय तिर्यंच, ज्योतिषी देव से आ कर उत्पन्न हो ? ५१ उत्तर-उपपात पूर्ववत् (पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होने वाले पंचेंद्रिय तियंच के अनुसार) । ५२ प्रश्न-जोइसिए णं भंते ! जे भविए पंचिंदियतिरिक्ख० ? ५२ उत्तर-एस चेव वत्तव्वया । जहा पुढविक्काइयउद्देसए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy