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________________ भगवती सूत्र-श. २४ उ. २० पंचेन्द्रिय तिर्यचों की उत्पत्ति ३१२९ के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले पञ्चेन्द्रिय तिर्यचों में आता है। भावार्थ-प्रश्न-हे भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते उत्तर-रत्नप्रभा पृथ्वी में आने वाले असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तियंच के अनुसार यावत् कालादेश पर्यत । परिमाण-जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात, शेष पूर्ववत् ३ । १७-सो चेव अप्पणा जहण्णकालटिईओ जाओ जहण्णेणं अंतोमुहुत्तट्टिईएसु, उक्कोसेणं पुव्वकोडिआउएसु उववनंति । प्रश्न-ते णं भंते ! उत्तर-अवसेसं · जहा एयस्म पुढविक्काइएसु उववजमाणस्स मज्झिमेसु तिसु गमएसु तहा इह वि मज्झिमेसु तिसु गमएसु जाव 'अणुबंधो ति । भवादेसेणं जहण्णेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई । कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ चाहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाओ ४ । भावार्थ-१७-यदि वह स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला हो, तो जघन्य अन्तर्मुहूर्त की स्थिति वाले और उत्कृष्ट पूर्वकोटि वर्ष की स्थिति वाले पंचेंद्रिय तियंच में आता है। प्रश्न-हे भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने आते हैं, इत्यादि ? उत्तर-जिस प्रकार पृथ्वीकायिक में आने वाले जघन्य स्थिति वाले असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तियंच के मध्य के तीन गमकों का कथन किया है, उसी प्रकार यहां भी तीनों ही गमकों में यावत् अनुबन्ध तक जानना चाहिये । भवादेश से जघन्य दो भव और उत्कष्ट आठ भव तथा कालादेश से जघन्य दो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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