SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 498
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र-श. २४ उ. २० पंचेन्द्रिय तिपंचों की उत्पत्ति ३१२७ तिरिक्ख जोणिएहितो उववज्जति ? १३ उत्तर-गोयमा ! सण्णिपंचिंदिय०, भेओ जहेव पुढविक्काइ. एसु उववजमाणस जाव भावार्थ-१३ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि वह पञ्चेन्द्रिय तिर्यच, पञ्चेन्द्रिय . तियं च योनिक से ही आता है, तो क्या संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच से आता है या असंज्ञो पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच से ? १३ उत्तर-हे गौतम ! वह दोनों प्रकार के पञ्चेन्द्रिय तिथंच से आता है, इत्यादि पृथ्वीकायिक में आने वाले तियंच के भेद के अनुसार यावत् १४ प्रश्न-असण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए • पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववजित्तए से णं भंते ! केवइयकाल० ? । १४ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं०, उक्कोसेणं पलिओ. वमस्स असंखेजहभागट्टिईएसु उववज्जति । भावार्थ-१४ प्रश्न-हे भगवन् ! असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तियंच, पञ्चेन्द्रिय तियंच में आता है, तो कितने काल की स्थिति में आता है ? १४ उत्तर-हे गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग को स्थिति वाले पञ्चेन्द्रिय तिर्यच-योनिक में आता है। १५ प्रश्न-ते णं भंते !० ? १५ उत्तर-अवसेसं जहेव पुढविकाइएसु उववजमाणस्स असण्णिस्स तहेव गिरवसेसं जाव 'भवादेसो' ति कालादेसेणं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy