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________________ भगवती सूत्र - २४ उ. १२ पृथ्वीकायिक जीवों की उत्पत्ति भावार्थ - ४४ प्रश्न - हे भगदन् ! वे असुरकुमार, एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? ४४ उत्तर - हे गौतम! जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते है । ४५ प्रश्न - तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरगा किं संघयणी पण्णत्ता ? ४५ उत्तर - गोयमा ! छण्हं संघयणाणं असंघयणी जाव परि णमंति । ३०९७ भावार्थ - ४५ प्रश्न - हे भगवन् ! उन जीवों (पृथ्वीकायिक जीवों में आने वाले भवनपति देवों) के शरीर कितने संहनन वाले हैं ? ४५ उत्तर - हे गौतम ! उनके शरीर छहों प्रकार के संहनन से रहित होते यावत् इष्ट, कान्त और मनोज्ञ पुद्गल शरीर संघात रूप से परिणमते हैं । ४६ प्रश्न - तेसि णं भंते ! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा ? ४६ उत्तर - गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - भवधारणिजा य उत्तरवेउब्विया य । तत्थ णं जा सा भवधारणिजा सा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं सत्त रयणीओ तत्थ णं जा सा उत्तरवेउब्विया सा जहणणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं +, उक्कोसेणं जोयणसयसहस्सं । भावार्थ - ४६ प्रश्न - हे भगवन् ! उन जीवों के शरीर की अवगाहना कितनी बड़ी होती हैं ? + 'सुतागमे' में यहाँ 'नसंखेज्जइभाग' पाठ दिया, जो अनुपयुक्त लगता है-होशी । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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