SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 464
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र-श. २४ उ. १२ पृथ्वीकायिक जीवों की उत्पत्ति ३०६३ वासाउय०, असंखेजवामाउय० ? ३७ उत्तर-गोयमा ! संखेजवासाउय०, णो असंखेजवासाउय० । भावार्थ-३७ प्रश्न-यदि वे संज्ञी मनुष्यों से आते हैं, तो क्या संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले या असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले संज्ञो मनुष्यों से आते हैं ? ३७ उत्तर-हे गौतम ! वे संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले संज्ञो मनुष्यों से आते हैं, असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले संज्ञी मनुष्यों से नहीं आते । ३८ प्रश्न-जइ संखेजवासाउय० किं पजत्त०, अपजत्त० ? ३८ उत्तर-गोयमा ! पजत्तसंखेज०, अपजत्तसंखेजवासाउय० जाव उववजनि। भावार्थ-३८ प्रश्न-यदि वे संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले मनुष्यों से आते हैं, तो पर्याप्त मनुष्यों से आते हैं या अपर्याप्त से ? ३८ उत्तर-हे गौतम ! पर्याप्त और अपर्याप्त दोनों प्रकार के संज्ञी . मनुष्यों से आते है। ३९ प्रश्न-सण्णिमणुस्से णं भंते ! जे भविए पुढविकाइएसु उववजित्तए से णं भंते ! केवइयकाल ? ३९ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसंवाससहस्सठिईएसु । भावार्थ-३९ प्रश्न-हे भगवन् ! संख्यात वर्ष की आयुष्य वाला संजी मनुष्य, पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने के योग्य हैं, तो वह कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy