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________________ भगवती सूत्र - २४ उ ३ नागकुमारों का उपपात नहीं, इत्यादि, असुरकुमारों में उत्पन्न होने के योग्य मनुष्यों के समान जानना चाहिये । यावत् ÷०६१ १३ प्रश्न- असंखेज्जवा साउयस ष्णिमणुस्से णं भंते! जे भविए नागकुमारेसु उववजित्तर से णं भंते ! केवहयकालट्टिईएसु उववज्जइ ? १३ उत्तर - गोयमा ! जहणेणं दसवाससहरसाई उकोसेणं देसूणाईं दो पलिओमाईं, एवं जहेब असंखेज्जवासाज्याणं तिरिक्खजोणियाणं णागकुमारेसु आदिल्ला तिष्णि गमगा तहेव इमस्स वि । वरं पढमबिएस गमएस सरीरोगाहणा जहण्णेणं साइरेगाई पंचधणुसयाई, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई, तइयगंमे ओगाहणा जहण्णेणं सूणाई दो गाउयाई, उक्कोसेणं तिष्णिं गाउयाई, सेसं तं चेव ३ | भावार्थ - १३ प्रश्न - हे भगवन् ! असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाला संजी मनुष्य, नागकुमारों में उत्पन्न हो, तो कितने काल की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न होता है ? Jain Education International १३ उत्तर - हे गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट देशोन दो पत्योपम की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न होता है । इस प्रकार असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले तिर्यचों का नागकुमारों में उत्पन्न होने सम्बन्धी प्रथम के तीन गमक जानना चाहिये । परन्तु पहले और दूसरे गमक में शरीर की अवगाहना जघन्य सातिरेक पाँच सौ धनुष और उत्कृष्ट तीन गाऊ होती है । तीसरे गमक में अवगाहना जघन्य देशोन दो गाऊ और उत्कृष्ट तीन गाऊ की होती है, शेष पूर्ववत् ( १-२-३) । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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