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________________ ३०५४ भगवती सूत्र-श. २४ उ. २ असुकुरमारों का उपपात सागरोवमेण कायव्वो, सेसं तं चेव ९। * 'सेवं भंते ! सेवं भंते' ! त्ति * ॥ चउवीसइमे सए बीओ उद्देसो समत्तो ॥ भावार्थ-२५ प्रश्न-हे भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? २५ उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार रत्नप्रभा में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों के नव गमक कहे गये हैं, उसी प्रकार यहां भी है । संवेध सातिरेक सागरोपम, शेष पूर्ववत् (१ से ९) । ___'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन-'तीन पल्योपम की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होते है यह कथन देवकुरु आदि के युगलिक मनुष्यों की अपेक्षा समझना चाहिये, क्योंकि वे ही अपनी आयु के समान देवायु के उत्कृष्ट बन्धक होते हैं। शरीर अवगाहना के विषय में औधिक मनुष्य का औधिक असुरकुमारों में उत्पन्न होने सम्बन्धी प्रथम गमक है और औधिक मनुष्य का जघन्य स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होने सम्बन्धी दूसरा गमक है । इनमें से औधिक असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाला मनुष्य, जघन्य सातिरेक पांच सौ धनुष प्रमाण होता है । यह सातवें कुलकर या उससे पहले होने वाला युगलिक मनुष्य समझना चाहिये और उसकी उत्कृष्ट अवगाहना तीन गाऊ परिमाण होती है, जैसे कि देवकुरु आदि का युगलिक मनुष्य । यह प्रथम गमक में होता है। दूसरे गमक में भी इसी तरह दोनों प्रकार का होता है और तीसरे गमक में तो तीन गाऊ की अवगाहना वाला होता है । क्योंकि यही तीन पल्योपम रूप उत्कृष्ट स्थिति में उत्पन्न होता है और वह उत्कृष्ट अपनी आयुष्य के समान ही देवायु का बन्धक होता है । संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले संज्ञी मनुष्य के नव ही गमकों का कथन पूर्ववत् (रत्नप्रभावत्) जानना चाहिये। ॥ चौबीसवें शतक का दूसरा उद्देशक सम्पूर्ण ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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