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________________ ३०४४ भगवती सूत्र-श. २४ उ. २ असुरकुमारों का उपपात वक्तव्यतानुसार, स्थिति और संवेध का विचार करना चाहिये ३ । ८-सो चेव उक्कोसकालट्टिईएसु उववण्णो जहण्णेणं तिपलिओ. वमहिईएसु, उक्कोसेण वि तिपलिओवमट्ठिईएसु उववजेजा-एस चेव वत्तव्वया । णवरं ठिई से जहण्णेणं तिण्णि पलिओचमाइं, उकोसेण वि तिण्णि पलिओवमाई । एवं अणुबंधो वि । कालादेसेणं जहण्णेणं छप्पलिओवमाई, उकोमेण वि छप्पलिओवमाइं-एवइयं० सेसं तं चेव ३। . भावार्थ-८-यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है, इत्यादि पूर्वोक्त वर्णनवत् । स्थिति और अनुबन्ध जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योपम । काल से जघन्य और उत्कृष्ट छह पल्योपम तक यावत् गमना. गमन करता है । शेष सब पूर्ववत् ३। ९-सो चेव- अप्पणा जहण्णकालढिईओ जाओ, जहण्णेणं दसवाससहस्सटिईएसु, उक्कोसेणं साइरेगपुव्वकोडीआउएसु उववजेजा। भावार्थ-९-यदि असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाला संजी पंचेंद्रिय तियंचयोनिक जघन्य काल की स्थिति वाला हो और असुरकुमारों में उत्पन्न हो, तो वह जघन्य दस हजार बर्व और उत्कृष्ट सातिरेक पूर्वकोटि वर्ष आयुष्य वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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