SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 398
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र-श. २४ उ. १ मनुष्यों का नरकोपपात होते हैं । केवलिसमुद्घात को छोड़ कर शेष छह समुदघात होती है । स्थिति और अनुबन्ध जघन्य मास-पृथक्त्व और उत्कृष्ट पूर्वकोटि । शेष सब पूर्ववत् । संवेध-काल को अपेक्षा जघन्य मास-पृथक्त्व अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम तक यावत् गमनागमन करता है १ । ९३-सो चेव जहण्णकालट्ठिईएसु उववष्णो-एस चेव वत्तव्वया। णवरं कालादेमेणं जहण्णेणं दसवासमहस्साइं मासपुहत्तमभहियाई, उकोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ चत्तालीसाए वाससहरसेहिं अभहियाओ-एवइयं ० २। ९३-यदि वह मनुष्य जघन्य काल की स्थिति वाले रत्नप्रभा नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो पूर्ववत् । विशेषता यह कि काल की अपेक्षा जघन्य मासपृथक्त्व अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चालीस हजार वर्ष तक यावत् गमनागमन करता है २। ९४-सो चेव उक्कोसकोलट्ठिईएसु उववण्णो-एस चेव वत्तव्वया। णवरं कालादेसेणं जहण्णेणं सागगेवमं मासपुहुत्तमभहियं, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहिं पुव्वकोडीहिं अभहियाई-एवइयं जाव करेजा ३। . ९४-यदि वह मनुष्य, उत्कृष्ट स्थिति वाले रत्नप्रभा नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो उसके लिए पूर्वोक्त सभी वर्णन जानना चाहिए। विशेषता यह कि. काल से मास-पृथक्त्व अधिक एक सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम तक यावत् गमनागमन करता है ३। .. ... Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy