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________________ ३००२ भगवती सूत्र-श. २४ उ. १ सज्ञी तियंच का नरकोपपात वसाय स्थान अप्रशस्त होते हैं । आयुष्य की दीर्घ स्थिति हो, तो प्रशस्त और अप्रशस्त दोनों प्रकार के अध्यवसाय हो सकते हैं । अनुबन्ध आयुष्य के समान ही होता है और कायसंवेध नैरयिक और असंज्ञी तिथंच पंचेन्द्रिय की जघन्य स्थिति और उत्कृष्ट स्थिति दोनों को मिला कर जाननी चाहिये । संज्ञी तिर्यंच का नरकोपपात ५२ प्रश्न-जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति, किं संखेजवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति, असंखेजवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्ख० जाव उववजति ? . ५२ उत्तर-गोयमा ! संखेजवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिवखजोणिएहिंतो उववजंति, णो असंखेनवासाउय० जाव उववजति । ___ भावार्थ-५२ प्रश्न-हे भगवन् ! जो नैरयिक, संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक से आते हैं, वे संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच से आते हैं, या असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यच-से आते हैं ? ५२ उत्तर-हे गौतम ! वे संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले संजी पंचें- . द्रिय तिर्यंच से आते है, असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले संज्ञी पंचेंद्रिय तिर्यच से नहीं। ५३ प्रश्न-जइ संखेन्जवासाउयसण्णिपंचिंदिय० जाव उववजति किं जलचरेहिंतो उवबजंति-पुच्छा। ५३ उत्तर-गोयमा ! जलचरेहितो उववजंति, जहा असण्णी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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