SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 304
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र - श. २० उ. ५० द्वादन समर्जिन वादोहिं वा तीहिं वा उक्कोमेणं, एक्कारसरणं पवेसणएणं पविसंति ते णं णेरइया गोबारससमज्जिया २ । जे णं णेरड्या वारस एणं अण्णेण य जहणेणं एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा उक्कोसेणं एकारणं पवेसणणं पविसंति ते णं णेरइया बारसएण य गोवारसपण य समज्जिया ३ । जे णं णेरइया णेगेहिं वारस हिं पवेसण गं पविसंति ते णं णेरड्या वारसएहिं समज्जिया ४ । जे गं २०३३ या गेहिं वारस एहिं अण्णेण य जहणेणं एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा कोणं एकारसरणं पवेसणएणं पविसंति ते गं रइया चारसहि यणोचारसरण य समजिया ५ । से तेणट्टेणं जाव समज्जिया वि । एवं जाव धणियकुमारा । कठिन शब्दार्थ - बारससमज्जिया - द्वादश समजत । भावार्थ- १९ प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिक जीव द्वादश- समजित हैं, या नो- द्वादश समजत हैं, या द्वादश, नो-द्वादश- समजत हैं, या अनेक द्वादश समजत हैं, या अनेक द्वादश और नो- द्वादश समजित हैं ? Jain Education International १९ उत्तर - हे गौतम ! नैरयिक द्वादश- समजित भी हैं, यावत् अनेक द्वादश और नो-द्वादश- समजत भी हैं। प्रश्न - हे भगवन् ! किस कारण ऐसा कहा गया कि नैरयिक यावत् अनेक द्वादश और नो-द्वादश- समजत भी हैं ? उत्तर - हे गौतम! जो नेरयिक एक समय में बारह की संख्या में प्रवेश करते हैं, वे द्वादश समजत हैं। जो नैरयिक जघन्य एक, दो, तीन और उत्कृष्ट ग्यारह तक प्रवेश करते हैं, वे नो-द्वादश- समजत हैं । जो नैरयिक एक समय में बारह और जघन्य एक, दो, तीन तथा उत्कृष्ट ग्यारह तक प्रवेश करते हैं, For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy