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________________ २९१२ भगवती मूत्र-स. २० उ. ९. चारण-मुनि की तोव-गति चारण और जंघाचारण। २ प्रश्न-हे भगवन् ! विद्याचारण मुनि को 'विद्याचारण' क्यों कहते हैं ? २ उत्तर-हे गौतम ! निरन्तर बेले-बेले के तपपूर्वक पूर्वगत श्रुत रूप विद्या द्वारा उत्तरगुण-लब्धि ( तपोलब्धि ) को प्राप्त मुनि को विद्याचारण नामक लब्धि उत्पन्न होती है । इससे यावत् 'विद्याचारण' कहते हैं। ३ प्रश्न-विजाचारणस्स णं भंते ! कहं सीहा गई, कहं सीहे गइविसए पण्णत्ते ? ३ उत्तर-गोयमा ! अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे जाव किंचिविसेसाहिए परिक्खेवणं, देवे णं महड्ढीए जाव महेसक्खे जाव 'इणामेव' त्तिकटु केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं तिहिं अच्छराणिवाएहिं तिक्खुत्तो अणुपरियट्टित्ता णं हव्वमागच्छेजा, विजाचारणस्स णं गोयमा ! तहा सीहा गई, तहा सीहे गइविसए पण्णत्ते । ४ प्रश्न-विजाचारणस्स णं भंते ! तिरियं केवइयं गइविसए पण्णते ? ___४ उत्तर-गोयमा ! से णं इओ एगेणं उप्पाएणं माणुसुत्तरे पव्वए समोसरणं करेइ, माणु० २ करेत्ता तहिं चेइयाई वंदइ, तहिं० २ वंदित्ता विइएणं उप्पाएणं गंदीसरवरे दीवे समोसरणं करेइ, गंदीस०२ करेत्ता तहिं चेइयाइं वंदइ, तहिं० २ वंदित्तातओ पडिणियत्तइ, तओ पडिणियत्तित्ता इहमागच्छद, इहमागच्छित्ता इह चेइयाइं वंदइ । विजा. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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