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________________ २८७४ भगवती सूत्र - श. २० उ ५ परमाणु और स्कन्ध के वर्णादि चवण्णा जेहेव णवपसियस्स । पंचवण्णे वि तहेव, णवरं बत्तीसमो भंगो भण्णइ । एवमेए एकग- दुयग-तियग- चउकग- पंचगसंजोए सु दोणि सत्तईसा भंगसया भवंति । गंधा जहा णवपरसियस्स । रसा जहा एयस्स चैव वण्णा । फासा जहा चउप्परसियस्स । जहा दसपएसिओ एवं संखेज्जपरसिओ वि, एवं असंखेज्जपरसिओ वि, सुहुमपरिओ अतपसि वि एवं चैव । भावार्थ - १० प्रश्न - हे भगवन् ! दस प्रदेशी स्कन्ध कितने वर्ण वाला होता है, इत्यादि प्रश्न । यह १० उत्तर - हे गौतम ! नव-प्रदेशिक स्कन्ध के समान यावत् कदाचित् चार स्पर्श वाला होता है-तक कहना चाहिये । इसके एक वर्ण, दो वर्ण, तीन वर्ण और चार वर्ण सम्बन्धी भंग नव प्रवेशी स्कन्ध के समान कहना चाहिये । जब वह पांच वर्ण वाला होता है, तो नव-प्रदेशी की तरह कहना चाहिये । परन्तु यहां 'अनेक देश काला, नीला, लाल, पीला और श्वेत होता है,' बत्तीसवां भंग अधिक कहना चाहिये । इस प्रकार असंयोगी ५, द्विक संयोगी ४०, त्रिक संयोगी ८०, चतु:संयोगी ८० और पंच- संयोगी ३२, ये सब मिला कर वर्ण के २३७ भंग होते हैं । गन्ध के ६ भंग नव- प्रदेशी स्कन्ध के समान है । वर्ण के समान रस के २३७ भंग होते हैं और स्पर्श सम्बन्धी ३६ भंग चतुष्प्र देशी के समान होते हैं । दस- प्रदेशी के समान संख्यात- प्रदेशी, असंख्यात प्रदेशी और सूक्ष्म-परिणाम वाला अनन्त प्रदेशी स्कन्ध भी कहना चाहिये । विवेचन - दस- प्रदेशी स्कन्ध के विषय में वर्ण के २३७, गन्ध के ६, रस के २३७ और स्पर्श के ३६, वे सब मिला कर ५१६ भंग होते हैं । इसी प्रकार संख्यात- प्रदेशी, असंख्यात प्रदेशी और सूक्ष्म-परिणाम वाले अनन्त प्रदेशी स्कन्ध के विषय में भी भंग कहने चाहिये । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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