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________________ भगवती सूत्र - ९ उ. ३१ अमोच्चा केवली सिका, इन दस के पास केवली प्ररूपित धर्म सुने बिना भी क्या कोई जीव केवली प्ररूपित धर्म का श्रवण - बोध ( श्रुत सम्यक्त्व का अनुभव ) करता है, मुण्डित होकर अगारवास से अनगारवास को स्वीकार करता है, शुद्ध ब्रह्मचर्यवास धारण करता है, शुद्ध संयम द्वारा संयम-यतना करता है, शुद्ध संवर द्वारा आश्रव का निरोध करता है, शुद्ध आभिनिबोधिक ज्ञान उत्पन्न करता है, यावत् शुद्ध मनः पर्यय ज्ञान तथा केवलज्ञान उत्पन्न करता है ? १५९१ १० उत्तर - हे गौतम ! केवली आदि के पास से सुने बिना भी कोई जीव बोध प्राप्त करता है और कोई जीव नहीं करता । कोई जीव शुद्ध सम्यक्त्व का अनुभव करता है और कोई नहीं करता । कोई जीव मुण्डित होकर अगारवास से अनगारपन स्वीकार करता है और कोई करता । कोई जीव नहीं और कोई नहीं करता । कोई जीव शुद्ध ब्रह्मचर्य वास धारण करता है शुद्ध संयम द्वारा संयम-यतना करता है और कोई नहीं करता । कोई जीव नहीं करता । कोई शुद्ध संवर द्वारा आश्रव का निरोध करता है और कोई जीव शुद्ध आभिनिबोधिक ज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:पर्यय ज्ञान और केवलज्ञान उत्पन्न करता है और कोई जीव नहीं करता । Jain Education International प्रश्न - हे भगवन् ! ऐसा कहने का कारण क्या है ? उत्तर - हे गौतम! ( १ ) जिस जीव ने ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम नहीं किया । ( २ ) दर्शनावरणीय कर्म का क्षयोपशम नहीं किया, (३) धर्मान्तकि कर्म का क्षयोपशम नहीं किया, (४) चारित्रावरणीय कर्म का क्षयोपशम नहीं किया, (५) यतनावरणीय कर्म का क्षयोपशम नहीं किया, (६) अध्यसानावरणीय कर्म का क्षयोपशम नहीं किया, (७) आभिनिबोधिक ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम नहीं किया, ( ८ से १० ) इसी प्रकार श्रुतज्ञानावरणीय, अवधिज्ञानावरणीय और मन:पर्यय ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम नहीं किया, (११) केवल ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय नहीं किया, वे जीव केवलज्ञानी आदि के पास के लिप्ररूपित धर्म को सुने बिना धर्म का बोध प्राप्त नहीं करते, शुद्ध For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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