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________________ ११६२ भगवती सूत्र-श. ७ उ. ६ छठे आरे के मनुष्यों का स्वरूप बल, वीर्य, पुरुष कार-पराक्रम का ह्रास होता जायगा । इस काल में पुद्गलों के वर्ण, गंध, रस और स्पर्श हीन होते जावेंगे। शुभभाव घटते जावेंगे और अशुभ भाव बढ़ते जावेंगे। अवसर्पिणी काल दस कोडाकोड़ी सागरोपम का होता है। इस काल के छह विमाग है जिन्हें 'आरा' कहते हैं । वे इस प्रकार हैं-(१) सुषमसुषमा, (२) सुषमा, (३) सुषमदुषमा, (४) दुषमसुषमा, (५) दुषमा और (६) दुषमदुषमा। इन सब आरों में जीव और पुद्गलों की क्रमशः हीन, हीनतर और हीनतम दशा होती जाएगी। छठे आरे में हीनतम दशा होगी। जिसका वर्णन ऊपर किया गया है । इसका विस्तृत विवेचन जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र के दूसरे वक्षस्कार में है। वहाँ अवसर्पिणी काल के छह आरों का तथा उत्सर्पिणीकाल के छह आरों के स्वरूप का विस्तृत वर्णन दिया गया है। छठे आरे के मनुष्यों का स्वरूप १९ प्रश्न-तीसे णं भंते ! समाए भारहे वासे मणुयाणं केरिसए आयारभावपडोयारे भविस्सइ ? __ १९ उत्तर-गोयमा ! मणुया भविस्संति दुरूवा, दुव्वण्णा, दुग्गंधा, दुरसा, दुफासा, अणिट्ठा, अकंता जाव अमणामा, हीणस्सरा, दीणस्सरा, अणिट्ठस्सरा, जाव अमणामस्सरा, अणादेज्जवयणपच्चायाया णिल्लज्जा, कूड-कवड-कलह-वह-बंध-वेरणिरया, मज्जायातिक्कमप्पहाणा, अकज्जणिच्चुज्जता, गुरुणियोय-विणयरहिया य, विकलरूवा, परूढणह-केस-मंसु-रोमा, काला, खर-फरसझामवण्णा, फुट्टसिरा, कविल-पलियकेसा, बहुण्हारसंपिणद्ध-दुईसणिज्जरूवा, संकुडियवलीतरंगपरिवेढियंगमंगा, जरापरिणयव्व Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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