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________________ - भगवती सूत्र-शं. ७ उ. २ प्रत्याख्यानी अप्रत्याख्यानी ११२१ ९ उत्तर-हे गौतम ! जीव, मूलगुण प्रत्याख्यानी भी हैं, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी भी हैं और अप्रत्याख्यानी भी हैं। .......... १० प्रश्न-हे भगवन् ! क्या नरयिक जीव, मूलगुण प्रत्याख्यानी है, उत्तरगुण प्रत्याख्यानी हैं, या अप्रत्याख्यानी हैं ? १० उत्तर-हे गौतम ! नरयिक जीव, मूलगुण प्रत्याख्यानी नहीं हैं, उत्तर-गुण प्रत्याख्यानी भी नहीं हैं, अप्रत्याख्यानी हैं। इस प्रकार चतुरिन्द्रिय, जीवों पर्यन्त कहना चाहिये । पंचेन्द्रिय तियंच और मनुष्यों के विषय में औधिक जीवों की तरह कहना चाहिये । वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों के विषय में नरयिक जीवों की तरह कहना चाहिये। ११ प्रश्न-एएसि णं भंते ! जीवाणं मूलगुणपञ्चक्खाणीणं, उत्तरगुणपञ्चक्खाणीणं, अपच्चक्खाणीण य कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया वा ? ____ ११ उत्तर-गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा मूलगुणपञ्चवखाणी, उत्तर... 'गुणपञ्चक्खाणी असंखेजगुणा, अपञ्चक्खाणी अणंतगुणा । १२ प्रश्न-एएसि णं भंते ! पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणंपुच्छा । १२ उत्तर-गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मूलगुणपञ्चक्खाणी, उत्तरगुणपञ्चक्खाणी असंखेजगुणा, अपञ्चक्खाणी असंखेजगुणा। .. १३ प्रश्न-एएसि णं भंते ! मणुस्साणं मूलगुणपञ्चक्खाणीणं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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