SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 464
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती मूत्र-ग. ८ उ. ९ कामेण शरीर प्रयोग बंध प्रकार तेजस् शरीर का स्थितिकाल कहा, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिये । यावत् अन्तराय कर्म के स्थिति काल तक कहना चाहिये । ९१ प्रश्न-हे भगवन् ! ज्ञानावरणीय कार्मण-शरीर प्रयोग-बंध का अन्तर कितने काल का होता है। ___ ९१ उत्तर-हे गौतम ! अनादिअपर्यवसित और अनादिसपर्यवसित । ज्ञानावरणीय कार्मण-शरीर प्रयोगबंध का अन्तर नहीं होता। जिस प्रकार तेजस्शरीर प्रयोग-बंध के अन्तर के विषय में कहा गया, उसी प्रकार यहां भी समझना चाहिये, यावत् । अन्तराय कार्मण-शरीर प्रयोग-बंध के अन्तर तक जानना चाहिये। ९२ प्रश्न-हे भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म के देश-बंधक और अबंधक जीवों में कौन किससे कम, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? ९२ उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार तेजस्-शरीर का अल्पबहुत्व कहा, उसी प्रकार कहना चाहिये। इसी प्रकार आयुष्य-कर्म के सिवाय यावत् अन्तरायकर्म तक कहना चाहिये। ९३ प्रश्न-आउयस्स पुच्छा। ९३ उत्तर-गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा आउयस्स कम्मस्स देमबंधगा, अवंधगा संखेजगुणा । भावार्थ-९३ प्रश्न-हे भगवन् ! आयुष्यकर्म के देश-बंधक और अबंधक जीवों में कौन किससे कम, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक है। . ९३ उत्तर- गौतम ! आयुष्य-कर्म के देशबंधक जीब, सब से धोरे हैं, उससे अबंधक जीव संख्यात गुण है। विवेचन-आठ प्रकार के कर्मों के पिण्ड को कार्मणशरीर कहते हैं। उसके जानावरणीय आदि आठ भेद कहे गये हैं । ज्ञानावरगीय और दर्शनावरणीय कर्म बन्ध के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy