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________________ . भगवती सूत्र-श. ८ उ. ९ कार्मण परीर प्रयोग बंध १५२१ किस कर्म के उदय से होता है ? __७७ उत्तर-हे गौतम ! प्राणियों पर अनुकम्पा करने से, मतों (चार स्थावरों) पर अनुकम्पा करने से इत्यादि, जिस प्रकार सातवें शतक के छठे उद्देशक में कहा है, उसी प्रकार यहां भी कहना चाहिये यावत् प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों को परिताप नहीं उपजाने से और साता-वेदनीय कार्मण-शरीर प्रयोग नानकर्म के उदय से साता-वेदनीय कार्मण-शरीर प्रयोग-बंध होता है। . ७८ प्रश्न-हे भगवन् ! असातावेदनीय कार्मणशरीर प्रयोग-बंध किस कर्म के उदय से होता है ? ७८ उत्तर-हे गौतम ! दूसरे जीवों को दुःख देने, उन्हें शोक उत्पन्न करने से, इत्यादि जिस प्रकार सातवें शतक के छठे उद्देशक में कहा है, उसी प्रकार यहां भी कहना चाहिये, यावत् उन्हें परिताप उपजाने और असातावेदनीय कार्मणशरीर-प्रयोग नामकर्म के उदय से असातावेदनीय कार्मण-शरीर प्रयोगबंध होता है। ७९ प्रश्न-मोहणिज्जकम्मासरीर-पुच्छा। - ७९ उत्तर-गोयमा ! तिव्वकोहयाए, तिव्वमाणयाए, तिब्वमाय. याए, तिव्वलोभयाए, तिव्वदंसणमोहणिज्जयाए, तिव्वचरित्तमोहणिजयाएं मोहणिजकम्मासरीरप्पओग० जाव पओगबंधे । . भावार्थ-७९ प्रश्न-हे भगवन् ! मोहनीय कार्मण-शरीर प्रयोग बंध किस कर्म के उदय से होता है ? | ... ७६ उत्तर-हे गौतम ! तीव्रक्रोध करने से, तीव्र मान करने से, तीव्र माया करने से, तीव्र लोभ करने से, तीव्र दर्शन-मोहनीय से, तीव चारित्र-मोहनीय से और मोहनीय कार्मण-शरीर-प्रयोग-नामकर्म के उदय से-मोहनीय-कार्मण. शरीर प्रयोग-बंध होता है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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