SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 450
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र - श. ८ उ. ९ आहारक शरीर प्रयोग बन्ध केवच्चिरं होइ ? ६५ उत्तर - गोयमा ! सव्वबन्धंतरं जहण्णेणं अतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं - अनंताओ उस्सप्पिणी ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अनंता लोया-अवड्ट पोग्गलपरियट्टं देणं । एवं देसबन्धंतरं पि । ६६ प्रश्न - एएसि णं भंते ! जीवाणं आहारगसरीरस्स देस बन्धगाणं, सव्वबन्धगाणं, अबन्धगाण य कयरे कयरेहिंतो जाव विसेसाहिया वा ? ६६ उत्तर - गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा आहारगसरीरस्स सव्वबन्धगा, देसबन्धगा संखेज्जगुणा, अवन्धगा अनंतगुणा । १५१३ कठिन शब्दार्थ - अवडपोग्गलपरिय-अपार्द्ध पुद्गल-परावर्त । भावार्थ - ६२ प्रश्न - हे भगवन् ! आहारक-शरीर प्रयोग-बंध किस कर्म उदय से होता है ? ६२ उत्तर - हे गौतम! सवीर्यता, सयोगता और सद्द्रव्यता यावत् लब्धि से तथा आहारक- शरीर प्रयोग नाम-कर्म के उदय से आहारकशरीर प्रयोग-बन्ध होता है । ६३ प्रश्न - हे भगवन् ! आहारक- शरीर प्रयोग-बन्ध क्या देश बन्ध होता है, या सर्व-बन्ध ? रहता है ? Jain Education International ६३ उत्तर - हे गौतम ! सर्व-बन्ध भी होता है और देश-बन्ध मी । ६४ प्रश्न - हे भगवन् ! आहारक- शरीर प्रयोग-बन्ध कितने काल तक For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy