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________________ १४८८ भगवती सूत्र-श. ८ उ. ५ शरीर बंध ३३ उत्तर-गोयमा ! सब्वबन्धे एक्कं समयं, देसबन्धे जहण्णेणं खुड्डागभवग्गहणं तिसमयऊणं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई समयऊणाई; एवं सब्बेसि सव्वबन्धो एक्कं समयं, देसबन्धो जेसिं पत्थि वेउब्वियसरीरं तेसिं जहण्णेणं खुड्डागभवग्गहणं तिसमयऊणं, उक्कोसेणं जा जस्स ठिई सा समयऊणा कायव्वा । जेसिं पुण अत्थि वेउब्वियसरीरं तेसिं देसवन्धो जहण्णेणं एवकं समयं, उक्कोसेणं जा जस्स ठिई सा समयऊणा कायब्वा, जाव मणुस्साणं देसबन्धे जहण्णेणं एक्कं समय, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई समयऊणाई। कठिन शब्दार्थ-खुड्डागभवग्गहणं-क्षुल्लक-भव ग्रहण, समयऊणाई-समय कम । भावार्थ-३१ प्रश्न-हे भगवन् ! औदारिक-शरीर-प्रयोगबंध कितने काल तक रहता है ? ___३१ उत्तर-हे गौतम ! सर्वबंध एक समय तक रहता है और देशबंध जघन्य एक समय और उत्कृष्ट एक समय कम तीन पल्योपम तक रहता है। ३२ प्रश्न-हे भगवन् ! एकेंद्रिय औदारिक-शरीर-प्रयोग-बंध कितने काल तक रहता है ? ३२ उत्तर-हे गौतम ! सर्व-बंध एक समय तक रहता है और देशबंध जघन्य एक समय और उत्कृष्ट एक समय कम बाईस हजार वर्ष तक रहता है। ३३ प्रश्न-हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक एकेंद्रिय औदारिक-शरीर-प्रयोग बंध कितने काल तक रहता है ? ३३ उत्तर-हे गौतम ! सर्वबंध एक समय तक रहता है और देशबन्ध जघन्य तीन समय कम क्षुल्लक भव पर्यंत और उत्कृष्ट एक समय कम बाईस हजार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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