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________________ १४८२ भगवती सूत्र-श. ८ उ. ६ गरीर बंध जीवाणं तत्थ तत्थ तेसु तेसु कारणेसु समोहणमाणाणं जीवप्पएसाणं वंधे समुप्पजइ । सेत्तं पुवपओगपञ्चइए । ___ २१ प्रश्न-से किं तं पडुप्पण्णपओगपञ्चइए ? २१ उत्तर-पडुप्पण्णपओगपञ्चइए जं णं केवलणाणिस्स अण. गारस्स केवलिसमुग्धाएणं समोहयस्स ताओ समुग्घायाओ पडिणियत्तमाणस्स अंतरा मंथे वट्टमाणस्स तेयाकम्माणं बंधे समुप्पज्जइ । किं कारणं ? ताहे से पएसा एगत्तीगया भवंति । सेत्तं पडुप्पण्णपओगपच्चड़ए । सेतं सरीरबंधे। कठिन शब्दार्थ-पुस्वप्पओगपच्चइए-पूर्व प्रयोग प्रत्यायक (पहले के प्रयोग सम्बन्धी) पडुप्पण्णपओगपच्चइए-प्रत्युत्पन्न (वर्तमान) प्रयोग प्रत्यायक, संसारत्थाणंसंसार में रहे हुए का, समोहणमाणाणं-समुद्घात करते हुए, पडिणियत्तमाणस्स-पीछे निवृत्त होते हुए, अंतरा-मध्य में, मंथे वट्टमाणस्स-मंथन में प्रवर्तते हुए, एगत्तीगया-एकत्रित । __ भावार्थ-१९ प्रश्न-हे भगवन् ! शरीर बंध कितने प्रकार का कहा गया है ? १९ उत्तर-हे गौतम ! शरीर बंध दो प्रकार का कहा गया है । यथा१ पूर्व-प्रयोग-प्रत्ययिक और २ प्रत्युत्पन्न-प्रयोग-प्रत्ययिक। २० प्रश्न-हे भगवन् ! पूर्व-प्रयोग-प्रत्ययिक शरीर बंध किसे कहते हैं ? २०.उत्तर-हे गौतम ! जहाँ जहाँ जिन जिन कारणों से समुद्घात करते हुए नरयिक जीवों का और संसारी सभी जीवों के जीव प्रदेशों का जो बंध होता है, उसे 'पूर्व-प्रयोग-प्रत्ययिक बंध' कहते हैं। यह पूर्व-प्रयोगप्रत्ययिक बंध है। २१ प्रश्न-हे भगवन् ! प्रत्युत्पन्न-प्रयोग-प्रत्ययिक बंध किसे कहते हैं ? २१ उत्तर-हे गौतम ! केवलोसमुद्घात द्वारा समुद्घात करते हुए और समुद्घात से वापिस निवृत्त होते हुए बीच में मन्थानावस्था में रहे हुए केवल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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