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________________ भगवती सूत्र - श. ८ उ. ७ अन्य-तीयिक र स्थविर संवाद १०२१ ११-तएणं ते थेरा भगवंतो ते अण्णउत्थिए एवं वयासीतुम्भे गं अजो! अदिण्णं गेण्हह, अदिण्णं भुंजह, अदिण्णं साइजह, तएणं तुम्भे अदिणं गेण्हामो, जाव एगंतवाला यावि भवह। १२-तएणं ते अण्णउत्थिया ते थेरे भगवंते एवं वयासी-केण कारणेणं अजो ! अम्हे अदिण्णं गेण्हामो, जाव एगंतबाला यावि भवामो ? - १३ तएणं ते थेरा भगवंतो ते अण्णउत्थिए एवं वयासो-तुम्भे (भं) णं अज्जो ! दिजमाणे अदिण्णे, तं चेव जाव गाहावइस्स णं तं, णो खलु तं तु , तएणं तुझे अदिणं गेण्हह, तं चेव जाव एगंतवाला यावि भवह । भावार्थ-१० इसके बाद उन अन्यतौथिकों ने उन स्थविर भगवन्तों से इस प्रकार कहा कि-'हे आर्यों ! हम किस कारण त्रिविध त्रिविध असंयत यावत् एकांत बाल हैं ?'... .. ११-उन स्थविर भगवंतों ने उन अन्यतीथिकों से इस प्रकार कहा कि 'हे आर्यों ! तुम अदत्त का ग्रहण करते हो, अदत्त का आहार करते हो और अदत्त की अनुमति देते हो। इसलिये अदत्त का ग्रहण करते हुए तुम यावत् एकांत बाल हो।' - १२-तब उन अन्यतीथिकों ने उन स्थविर भगवंतों से इस प्रकार पूछा'हे आर्यों ! हम किस कारण अदत का ग्रहण करते हैं यावत् एकांत बाल हैं ?' १३-उन स्थविर भगवंतों ने उन अन्यतीधिकों से इस प्रकार कहा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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