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________________ १३६८ भगवती सूत्र - श. ८ उ. ३ वृक्ष के भेद तहप्पगारा । सेत्तं अनंतजीविया । कठिन शब्दार्थ -- एगट्टिया -- एकास्थिक ( एक बीज वाले) बहुबीयगा -- बहुबीजक ( बहुत बीजों वाले फल ) । भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! वृक्ष कितने प्रकार के कहे गये हैं ? १ उत्तर - हे गौतम ! वृक्ष तीन प्रकार के कहे गये हैं। यथा-संख्यात जीव वाले, असंख्यात जीव वाले और अनन्त जीव वाले । २ प्रश्न - हे भगवन् ! संख्यात जीव वाले वृक्ष कितने प्रकार के कहे गये हैं ? २ उत्तर - हे गौतम ! संख्यात जीव वाले वृक्ष अनेक प्रकार के कहे गये हैं । यथा ताड़, तमाल, तक्कलि, तेतलि इत्यादि प्रज्ञापना सूत्र के पहले पद में कहे अनुसार यावत् नालिकेर पर्यन्त जानना चाहिये । इसके अतिरिक्त इस प्रकार के जितने भी वृक्ष विशेष हैं, वे सब संख्यात जीव वाले हैं । ३ प्रश्न - हे भगवन् ! असंख्यात जीव वाले वृक्ष कितने प्रकार के कहे हैं ? ३ उत्तर - हे गौतम! असंख्यात जीव वाले वृक्ष दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा-1 - एकास्थिक अर्थात् एक बीज वाले और बहुबीजक -बहुत बीजों वाले । ४ प्रश्न - हे भगवन् ! एकास्थिक वृक्ष कितने प्रकार के कहे गये हैं ? ४ उत्तर- हे गौतम! एकास्थिक वृक्ष अनेक प्रकार के कहे गये हैं । यथा-- नीम, आम, जामुन आदि । प्रज्ञापना सूत्र के पहले पद में कहे अनुसार यावत् बहुबीज वाले फलों तक कहना चाहिये । इस प्रकार असंख्यात जीविक वृक्ष कहे गये हैं । ५ प्रश्न--हे भगवन् ! अनन्तं जीव वाले वृक्ष कितने प्रकार के कहे गये ? ५ उत्तर--हे गौतम ! अनन्त जीव वाले वृक्ष अनेक प्रकार के कहे गये हैं । यथा--आलू, मूला, श्रृंगबेर ( अदरख ) आदि । भगवती सूत्र के सातवें शतक के तीसरे उद्देशक में कहे अनुसार यावत् सिउंढी, मुसुंडी तक जानना चाहिये । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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