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________________ भगवती सूत्र-श. ८ उ. २ ज्ञान की व्यापकना (विषय द्वार) १३५३ द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से । द्रव्य से उपयुक्त (उपयोग सहित) श्रुतज्ञानी, सभी द्रव्यों को जानता और देखता है । इस प्रकार क्षेत्र से, काल से भी जानना चाहिये । भाव से उपयुक्त श्रुतज्ञानी सभी भावों को जानता और देखता है। १०४ प्रश्न-हे भगवन् ! अवधिज्ञान का विषय कितना कहा है ? १०४ उत्तर-हे गौतम ! संक्षेप से चार प्रकार का कहा गया है। यथाद्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से । द्रव्य से अवधिज्ञानी रूपी द्रव्यों को जानता ओर देखता है । इत्यादि जिस प्रकार नन्दी सूत्र में कहा है, उसी प्रकार यावत् भाव पर्यन्त कहना चाहिये। १०५ प्रश्न-हे भगवन् ! मनःपर्यय ज्ञान का विषय कितना कहा गया है ? १०५ उत्तर-हे गौतम ! वह संक्षेप से चार प्रकार का कहा गया है। यथा-द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से । द्रव्य से ऋजुमति मनःपर्यय ज्ञानी, मनपने परिणत अनन्त प्रादेशिक अनन्त स्कंधों को जानता और देखता है । इत्यादि जिस प्रकार नन्दो सूत्र में कहा है उसी प्रकार यावत् भाव तक जानना चाहिये। १०६ प्रश्न-हे भगवन् ! केवलज्ञान का विषय कितना कहा गया है ? १०६ उत्तर-हे गौतम ! संक्षेप से चार प्रकार का कहा गया है। यथा-द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से । द्रव्य से केवलज्ञानी सभी द्रव्यों को जानता और देखता है। इस प्रकार यावत् भाव से केवलज्ञानी समस्त भावों को जानता और देखता है। १०७ प्रश्न-मइअण्णाणस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते ? १०७ उत्तर-गोयमा ! से समासओ चउविहे पण्णत्ते, तं जहादव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। दवओ णं मइअण्णाणी मइ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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