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________________ १३४० भगवती सूत्र -दा. ८ उ. २ ज्ञान दर्शनादि लब्धि जो ज्ञानी हैं, वे एक मात्र केवलज्ञान वाले हैं और जो अज्ञानी हैं, वे दो अज्ञान वाले या तीन अज्ञान वाले हैं। इसी प्रकार श्रुतज्ञान की लब्धि और अलब्धिवाले जीवों के विषय में भी जानना चाहिये । अवधिज्ञान लब्धिवाले तीन ज्ञान वाले ( मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान ) अथवा चार ज्ञान वाले (केवलज्ञान के सिवाय) होते हैं । अवधिज्ञान की अलब्धिवाले जो ज्ञानी हैं, दो ज्ञान वाले ( मतिज्ञान, श्रुनज्ञान ) हैं अथवा तीन ज्ञान ( मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और मनः पर्यवज्ञान) वाले हैं। अथवा एक ज्ञान (केवलज्ञान ) वाले । जो अज्ञानी हैं, वे दो अज्ञान (मति अज्ञान, श्रुत अज्ञान ) अथवा तीन अज्ञान वाले हैं । मन:पर्ययज्ञान लब्धिवाले तीन ज्ञान (मति, श्रुत और मनःपर्याय) वाले अथवा चार ज्ञान ( केवलज्ञान के सिवाय) वाले हैं । मन:पर्यय ज्ञान की अलब्धिवाले जो ज्ञानी हैं, वे दो ज्ञान वाले ( मनि और श्रुत) या तीन ज्ञान वाले (प्रथम के तीन ज्ञान । है, अथवा एक केवलज्ञान वाले है । इनमें जो अज्ञानी हैं, वे दो अज्ञान अथवा तीन अज्ञान वाले हैं । केवलज्ञान लब्धिवाले तो एक मात्र केवलज्ञान वाले हैं । केवलज्ञान की अलब्धि वाले जो ज्ञानी हैं, उनमें पहले के दो ज्ञान, अथवा पहले केतन ज्ञान, अथवा मनि, थुन और मनःपर्यत्र, ये तीन ज्ञान अथवा चार ज्ञान पाये जाते हैं । जो अज्ञानी हैं, उनमें पहले के दो अज्ञान अथवा तीन अज्ञान होते हैं । अज्ञानलब्धि वाले जीव अज्ञानी ही होते हैं, ज्ञानी नहीं होते। उन में भजना से तान अज्ञान होते हैं, अर्थात् कितने ही में पहले के दो अज्ञान और कितने ही में तीन अज्ञान होते हैं । ज्ञानलब्धि वाले जीव, जानी ही होते हैं। उनमें भजना से पांच ज्ञान पाये जाते हैं । मति अज्ञान और श्रुत अज्ञान की लविधवाले जीवों में भजना से तीन अज्ञान पाये जाते हैं। मति अज्ञान, श्रुत अज्ञान की अलब्धि वाले जीवों में पूर्वोक्त रीति से पाँच ज्ञान भजना से पाये जाते हैं । विभंगज्ञान लब्धिवाले जीवों में नियमा तीन अज्ञान पाये जाते हैं । विभंगज्ञान अलब्धि वाले ज्ञानी जीवों में पाँच ज्ञान भजना मे और अज्ञानी जीवों में नियम से दो अज्ञान पाये जाते हैं । दर्शन अर्थात् श्रद्धान । ज्ञानपूर्वक जो श्रद्धा होती है, वह 'सम्यश्रद्धान' है और जो अज्ञानपूर्वक होती है, वह 'मिथ्यावद्धान' है । सम्यक्थद्वान वाले जानी हा होते हैं । उनमें पाँच ज्ञान भजना से पाये जाते हैं। मिय्याश्रद्वान वाले अज्ञानी ही होते है। उन में तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं । दर्शन-लब्धि से रहित कोई भी जीव नहीं होता । क्योंकि सम्यग् मिथ्या, मिश्र इन तीनों में से कोई न कोई दर्शन सभी जीवों में पाया ही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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