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________________ भगवती सूत्र-श. ८ उ. २ ज्ञानी अज्ञानी की भजना के बीस द्वार ५५ उत्तर-हे गौतम ! उनका कथन सकायिक जीवों (सू. ३८) के समान जानना चाहिये। ५६ प्रश्न-हे भगवन् ! अभवसिद्धिक जीव ज्ञानी हैं, या अज्ञानी हैं ? ५६ उत्तर-हे गौतम ! ये ज्ञानी नहीं, किन्तु अज्ञानी है। इनमें तीन अज्ञान भजना से होते हैं। ५७ प्रश्न-हे भगवन् ! नोमवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक जीव ज्ञानी हैं, या अज्ञानी ? ५७ उत्तर-हे गौतम ! उनका कथन सिद्ध जीवों (सू. ३०) के समान जानना चाहिये। ५८ प्रश्न-हे भगवन् ! संज्ञो जीव ज्ञानी हैं, या अज्ञानी ? ५८ उत्तर-हे गौतम ! इनका कथन सेन्द्रिय जीवों (सू. ३५) के समान जानना चाहिये । असंज्ञी जीवों का कथन बेइन्द्रिय जीवों (सू. २८) के समान जानना चाहिये । मोसंजी-नोअसंजो जीवों का कथन सिद्ध जीवों (सू. ३०) के समान जानना चाहिये। विवेचन-कौन-से जीव, कितने ज्ञान वाले और कितने अज्ञान वाले होते हैं, यह बात यहां वतलाई गई है। इसे 'ज्ञानलब्धि' भी कहते हैं । इसका कथन बीस द्वारों से किया गया है । द्वार गाथा यह है गइइंदिए य काए, सुहमे पज्जत्तए भवत्ये य । भवसिद्धिए य सण्णी, लद्धि उवओग जोगे य ॥१॥ लेस्सा कसाय वेए आहारे, गाणगोयरे काले। अंतर अप्पाबहुयं च, पज्जवा चेव दाराई ॥२॥ अर्थ-१ गति, २ इन्द्रिय, ३ काय, ४ सूक्ष्म, ५ पर्याप्त, ६ भवस्थ, ७ भवसिद्धिक, ८ संज्ञी, ९ लन्धि, १० उपयोग, ११ योग, १२ लेश्या, १३ पाय, १४ वेद, १५ आहार, १६ ज्ञान गोचर (विषय), १७ काल, १८ अन्तर, १९ अल्पवहुत्व और २० पर्याय । १ गतिद्वार-गतिद्वार में सबसे प्रथम निरयगति का कथन किया गया है। निरय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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