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________________ . १३०६ भगवती सूत्र-शः ८ उ. २ नरयिक आदि में ज्ञानी अज्ञानी जे अण्णाणी ते णियमा दुअण्णाणी, तं जहा-मइअण्णाणी य सुयअण्णाणी य । एवं तेइंदिय-चउरिंदिया वि । ___२९ प्रश्न-पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। २९ उत्तर-गोयमा ! गाणी वि अण्णाणी वि । जे णाणी ते अत्थेगइया दुण्णाणी,. अत्थेगइया तिण्णाणी । एवं तिण्णि णाणाणि तिण्णि अण्णाणाणि य भयणाए। मणुस्सा जहा जीवा, तहेव पंच णाणाई तिण्णि अण्णाणाणि य भयणाए। वाणमंतरा जहा गैरइया । जोइसिय-वेमाणियाणं तिण्णि णाणाणि तिण्णि अण्णाणाणि णियमा । ३० प्रश्न-सिद्धाणं भंते ! पुच्छा ? ३० उत्तर-गोयमा ! णाणी, णो अण्णाणी, णियमा एगणाणी केवलणाणी । भावार्थ-२७ प्रश्न-हे भगवन ! पृथ्वीकायिक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? २७ उत्तर-हे गौतम ! वे ज्ञानी नहीं, किन्तु अज्ञानी हैं । वे नियमा दो अज्ञान वाले हैं। यथा-मतिअज्ञान और श्रुतअज्ञान । इस प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक पर्यन्त कहना चाहिये। २८ प्रश्न-हे भगवन् ! बेइंद्रिय जीव ज्ञानी हैं, या अज्ञानी है ?. २८ उत्तर--हे गौतम ! वे ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं वे नियमा दो ज्ञान वाले हैं। यथा-मतिज्ञान और श्रुतज्ञान । जो अज्ञानी है, वे नियमा दो अज्ञान (मतिअज्ञान और श्रुतअज्ञान) वाले हैं। इस प्रकार तेइंद्रिय और चौइन्द्रिय जीवों के विषय में भी कहना चाहिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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