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________________ १२९८ भगवती सूत्र--श. ८ उ. २ ज्ञान के भेद ज्ञान के भेद १७ प्रश्न-कइविहे णं भंते ! णाणे पण्णत्ते ? १७ उत्तर-गोयमा ! पंचविहे णाणे पण्णत्ते, तं जहा-आभिणिबोहियणाणे, सुयणाणे, ओहिणाणे, मणपज्जवणाणे, केवलणाणे। ___१८ प्रश्न-से किं तं आभिणिबोहियणाणे ? १८ उत्तर-आभिणिवोहियणाणे चउविहे पण्णत्ते, तं जहाउग्गहो, ईहा, अवाओ, धारणा; एवं जहा 'रायप्पसेणइजे' णाणाणं भेओ तहेव इह भाणियव्वो; जाव सेतं केवलणाणे। कठिन शब्दार्थ--उग्गहो-अवग्रह (सम्बन्ध मात्र होने वाला एक समय मात्र के लिए संबंध से होने वाला, आभास) ईहा--विचार करना, अवाओ--विचार कर निश्चित करना, धारणा--स्मृति में रखना। भावार्थ-१७ प्रश्न-हे भगवन् ! ज्ञान कितने प्रकार का कहा गया है ? १७ उत्तर-हे गौतम ! ज्ञान पांच प्रकार का कहा गया है । यथाआभिनिबोधिक ज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान । .. १८ प्रश्न-हे भगवन् ! आमिनिबोधिकज्ञान कितने प्रकार का कहा गया है ? १८ उत्तर-हे गौतम ! आभिनिबोधिक ज्ञान चार प्रकार का कहा गया है । यथा-अवग्रह, ईहा, अवाय (अपाय) और धारणा । जिस प्रकार राजप्रश्नीय सूत्र में ज्ञान के भेद कहे गये हैं, उसी प्रकार यावत् केवलज्ञान पर्यन्त कहना चाहिये। . . .. १९ प्रश्न-अण्णाणे णं भंते ! काविहे पण्णते ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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