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________________ १०८६ भगवती सूत्र - श. ७८. १ श्रमणो को प्रतिलाभने का लाभ कठिन शब्दार्थ - लग्भइ-प्राप्त करता है, समाहि उप्पाएइ - समाधि (शांति) उत्पन्न करता है, पडिलभइ - प्राप्त करता है, चयइ-छोड़ता है-देता है, दुच्चयं चयइ - कठिनाई से त्यागने योग्य वस्तु का त्याग करता है, बोहि बुज्झइ - बोधि- सम्यग्दर्शन का अनुभव करता है। भावार्थ-८ प्रश्न - हे भगवन् ! तथारूप के अर्थात् उत्तम श्रमण- माहण को प्रासुक और एषणीय अशन-पान खादिम स्वादिम द्वारा प्रतिलाभित करते हुए श्रमणोपासक को क्या लाभ होता है ? ८ उत्तर - हे गौतम! तथारूप के श्रमण- माहण को यावत् प्रतिलाभित करता हुआ श्रमणोपासक, तथारूप के श्रमण-माहण को समाधि उत्पन्न करता है । उन्हें समाधि प्राप्त कराने वाला वह श्रमणोपासक स्वयं भी समाधि प्राप्त करता है । ९ प्रश्न - हे भगवन् ! तथारूप के श्रमण- माहण को प्रतिलाभित करता हुआ श्रमणोपासक, किसका त्याग करता है ? ९ उत्तर - हे गौतम! वह जीवित (जीवन निर्वाह के कारणभूत अन्नादि ) का त्याग करता है, दुस्त्यज वस्तु का त्याग करता है, दुष्कर कार्य करता है, दुर्लभ वस्तु का त्याग करता है, बोधि ( सम्यग्दर्शन) को प्राप्त करता है । इसके बाद वह सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है । विवेचन तथारूप अर्थात् साधु के गुणों से और वेष से युक्त श्रमण-माहण को प्रासुक अर्थात् निर्जीव और एषणीय ( निर्दोष- दोष रहित ) अशन-पान खादिम स्वादिम प्रतिलाभित करता हुआ (बहराता हुआ) श्रमणोपासक क्या करना है ? इस प्रश्न के उत्तर में कहा गया है कि वह श्रमण-माहणों को समाधि उत्पन्न करता है और वह स्वयं भी समाधि प्राप्त करता है । वह श्रमणोपासक किसका त्याग करता है ? इस प्रश्न के उत्तर में कहा गया है कि वह जीवित का त्याग करता है। अशनादि वस्तुएँ जीवन निर्वाह की हेतुभूत हैं। इसलिए अशनादि का दान करता हुआ मानों जीवन का ही दान करता है। क्योंकि अशनादि का दान करना वा कठिन है । अथवा मूलपाठ में आये हुए 'चयइ' आदि क्रियाओं का दूसरा अर्थ किया गया है कि वह कर्मों की दीर्घ स्थिति को ह्रस्व करता है और कर्म द्रव्य सञ्चय का त्याग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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