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________________ १२७२ भगवती सूत्र-श. ८ उ. १ एक द्रम्य परिणाम होता है और उसके त्याग के समय औदारिक-मिश्र-काय-योग होता है । ४९ प्रश्न-जइ कम्मासरीरकायप्पओगपरिणए किं एगिदियकम्मासरीरकायप्पयोगपरिणए, जाव पंचिंदियकम्मासरीर जाव परिणए? ४९ उत्तर-गोयमा ! एगिदियकम्मासरीरकायप्पयोगपरिणए, एवं जहा 'ओगाहणसंठाणे, कम्मगस्स भेओ तहेव इहावि, जाव पज्जत्तसव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइय जाव देवपंचिंदियकम्मासरीरकायप्पयोगपरिणए, अपजत्तसव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइय जाव परिणए वा। ___ भावार्थ-४९ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि एक द्रव्य कार्मण-शरीर कायप्रयोग परिणत होता है, तो क्या एकेन्द्रिय कार्मण-शरीर काय-प्रयोग-परिणत होता है, अथवा यावत् पंचेन्द्रिय कार्मण-शरीर काय-प्रयोग-परिणत होता है ? : ४९ उत्तर-हे गौतम ! वह एकेन्द्रिय कार्मण-शरीर काय-प्रयोग-परिणत होता है । इस विषय में जिस प्रकार प्रज्ञापनासूत्र के इक्कीसवें.. 'अवगाहना संस्थान' पद में कार्मण के भेद कहे गये हैं, उसी प्रकार यहां भी जानना चाहिये। यावत् पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक देव पंचेंद्रिय कार्मणशरीर काय-प्रयोग-परिणत होता है, अथवा अपर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक देव पंचेंद्रिय कार्मण-शरीर काय-प्रयोग-परिणत होता है। विवेचन-(७) कार्मण काय-योग-केवल कार्मण-शरीर की सहायता से वीर्यशक्ति की जो प्रवृत्ति होती है, उसे 'कार्मण काय-योग' कहते हैं । यह योग विग्रहगति में अनाहारक अवस्था में सभी जीवों में होता है । केवली समुद्घात के तीसरे, चौथे और पांचवें समय में केवली भगवान् के होता है। शंका-कार्मण काय-योग के समान तेजस्-काय-योग क्यों नहीं कहा गया ? समाधान-कार्मण काय-योग के समान तेजस्-काय-योग इसलिये अलग नहीं माना कि तेजस् और कामण का सदा साहचर्य रहता है, अर्थात् औदारिक आदि अन्य शरीर, कभी कमी कार्मण-शरीर को छोड़ भी देते हैं, किंतु तेजस् शरीर उसे कभी नहीं छोड़ता । इसलिये Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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