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________________ १२१० भगवती सूत्र श. ७ उ ९ रथमूसल संग्राम स्कन्दक की तरह 'इस शरीर का भी अन्तिम श्वासोच्छ्वास के साथ त्याग करता हूँ', ऐसा कह कर उसने सन्नाहपट (कवच ) खोल दिया । सन्नाहपट को खोलकर बाण को बाहर खींचा। बाण को शरीर से बाहर निकाल कर आलोचना की, प्रतिक्रमण किया और समाधि युक्त काल धर्म को प्राप्त हो गया । तणं तस्स वरुणस्स णागणत्तुयस्स एगे पियवालवयंसए रहमुसलं संगामं संगामेमाणे एगेणं पुरिसेणं गाढप्पहारीकए समाणे अत्थामे अबले जाव अधारणिज्जमिति कट्टु वरुणं णागणत्तुयं रहमुसलाओ संगामाओ पडिणिक्खमाणं पासह, पासित्ता, तुरए णिगिण्हड़, तुरए णि गिहित्ता जहा वरुणे जाव तुरए विसजेड़, पडसंथारगं दुरुहड़, पडसंथारगं दुरुहित्ता पुरत्थाभिमुहे जाव अंजलिं कट्टु एवं वयासीजाईं णं भंते! मम पियबालवयंसस्स वरुणस्स णागणत्तुयस्स सीलाई, वयाई, गुणाई, वेरमणाई, पञ्चवाण- पोसहोववासाई, ताई णं ममं पि भवंतु त्ति कट्टु सण्णाहपट्टे मुयइ, मुझत्ता सल्लुद्धरणं करे, सल्लुद्धरणं करेत्ता आणुपुब्वी कालगए । तरणं तं वरुणं णागणत्तुयं कालगयं जाणित्ता अहासण्णिहिए हिं वाणमंतरेहिं देवेहिं दिव्वे सुरभिगंधो-दगवासे वुट्ठे, दसवण्णे कुसुमे णिवाइए, दिव्वे य गीयगंधवणिure कए यावि होत्था । तरणं तस्स वरुणस्म णागत्यस्स तं दिव्वं देविडिंट, दिव्वं देवज्जुडं, दिव्वं देवाणुभागं सुणित्ता ● इनका वर्णन भगवती सूत्र शतक २ उद्देशक १ पृ. ४४५ में है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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