SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र-श. ७ उ. ९ रथमूसल संग्राम १२०५ मण्णद्ध-बदधे सकोरंटमल्लदामेणं जाव धरिजमाणेणं; अणेगगणणायग० जाव दूय-संधिवालसदधि संपरिबुडे मजणघराओ पडिणिक्खमड़, पडिणिक्वमिता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसोला, जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ, दुरुहित्ता हय-गयरह जाव संपरिबुडे, महयाभडचडगर० जाव परिस्खित्ते जेणेव रहमुसले संगामे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रहमुमलं संगामं ओयाओ। कठिन शब्दार्थ-रायाभिओगेणं-राजा के अभियोग-आदेश से, भाणतेसमाणे-आज्ञा होने पर, अणुवट्टेइ-बढ़ाता है, दूय-संधिवालसद्धि-दूत और संधीपाल के साथ, चाउग्घंटचार घण्टाओं से युक्त, ओयाओ-उतरा। - भावार्थ-एक बार राजा के आदेश से, गण के अभियोग से और बल के अभियोग से, रथमूसल संग्राम में जाने की आज्ञा हुई। तब उसने बेले की तपस्या को बढ़ाकर तेले को तपस्या करली । उसने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और इस प्रकार कहा-'हे देवानुप्रियों! चार घण्टा गला अश्वरथ, सामग्री सहित तैयार कर उपस्थित करो। घोड़ा, हाथी, रथ और प्रवर-योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना को सज्जित करो, यावत् सज्जित करके यह मेरी आमा मुझे समपित करो। कोटुम्बिक पुरुषों ने यावत् उसको आज्ञा को स्वीकार कर छत्र सहित, ध्वजा सहित यावत् रथ को शीघ्र उपस्थित किया और घोड़ा, हाथी, रथ एवं प्रवर-योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना को सज्जित किया और बरुण-नागनत्तुआ को उसकी आज्ञा वापिस सौंपी। वरण-नागनत्तआ स्नानघर में गया और कोणिक की तरह यावत् कौतुक और मंगल रूप प्रायश्चित करके सर्वालङ्कारों से विभूषित हुआ, कवच पहना, कोरण्टपुष्प को माला युक्त छत्र धारण किया। फिर अनेक गणनायक यावत् दूत और सन्धिपालों के साथ परिवृत हो स्नान-घर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy