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________________ ११८८ भगवती सूत्र-श. ७ उ. ९ असंवृत अनगार प्रकार कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। . विवेचन-आधाकर्म का अर्थ इस प्रकार है "आधया साधुप्रणिधानेन यत्सचेतनमचेतनं क्रियते, अचेतनं वा पच्यते, चीयते वा गृहादिकं, वयते वा वस्त्रादिकं तदाधाकर्म ।" ___ अर्थ-साधु के लिये सचित्त पदार्थ को अचित्त बनाया जाय, अथवा अचित्त को पकाया जाय, घर आदि बनवाये जायें, वस्त्रादि बुनवाये जायें, उसे 'आधाकर्म' कहते हैं। तात्पर्य यह है कि आहार, पानी, वस्त्र, पात्र कम्बल, मकान आदि कोई.भी पदार्थ जो साध के लिये बनवाये जायें, वे सब 'भाधाकर्म' दोष दूषित हैं । इनका सेवन करना मुनि के लिये अनाचार है। इस विषय का विस्तृत विवेचन प्रथम शतक के नववें उद्देशक में किया जा चुका है। वहाँ 'पण्डितपन अशाश्वत है' तक का सारा वर्णन यहां कहना चाहिये । .: ॥ इति सातवें शतक का आठवां उद्देशक समाप्त ॥ शतक ७ उद्देशक असंवृत अनगार १ प्रश्न-असंवुडे णं भंते ! अणगारे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एगवण्णं एगरूवं विउवित्तए ? १ उत्तर-णो इणढे समटे। .. २ प्रश्न-असंवुडे णं भंते ! अणगारे बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू एगवणं एगरूवं जाव० ? ... Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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