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________________ ११७६ भगवती सूत्र-श. ७ उ. ७ छद्मस्थ और केवली . णेण वि, कम्मेण वि, बलेण वि, वीरिएण वि, पुरिसकार-परकमेण वि अण्णयराइं विपुलाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए, तम्हा भोगी, भोगे परिचयमाणे महाणिजरे, महापज्जवसाणे भवइ । ___ कठिन शब्दार्थ--छउमत्येणं-- छद्मस्थ-जिसका ज्ञान आवरण युक्त हो, खीणभोगी--अरस विरस खाने से दुर्बल शरीर वाला, वयह--कहते हैं, परिच्चयमाणे-त्याग करने पर, महापज्जवसाणे--महाफलवाला। भावार्थ-१८ प्रश्न-हे भगवन् ! ऐसा छदमस्थ मनुष्य जो किसी देवलोक में उत्पन्न होने के योग्य है, वह क्षीण-भोगी (दुर्बल शरीरवाला) उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकारपराक्रम द्वारा विपुल और भोगने योग्य भोगों को भोगने में समर्थ नहीं है ? हे भगवन् ! आप इस अर्थ को इसी तरह कहते हैं ? १८ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं। वह उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकारपराक्रम द्वारा किन्हीं विपुल और भोगने योग्य भोगों को भोगने में समर्थ है। इसलिये हे गौतम ! वह भोगी, मोगों का त्याग करता हआ महानिर्जरा और महापर्यवसान (महाफल) वाला होता है। विवेचन-भोग भोगने का साधन शरीर है । इसलिये शरीर को यहाँ भोगी कहा है। तपस्या या रोगादि से जिसका शरीर क्षीण हो गया हो, वह 'क्षीणभोगी' कहलाता है। उसके विषय में भोग भोगने सम्बन्धी जो प्रग्न किये गये हैं, उनका आशय यह है कि यदि वह भोग भोगने में असमर्थ है, तो वह भोगी नहीं कहला सकता और जब भोगी नहीं है, तो वह किन भोगों का त्याग करेगा ? अतएव भोग-त्यागी भी नहीं कहला सकता और जबकि वह भोग त्यागी नहीं है, तो उसके निर्जरा नहीं होगी। निर्जरा के अभाव में देवलोक में उत्पत्ति नहीं हो सकती। ___ इस प्रश्न का उत्तर यह दिया गया है कि वह क्षीण-भोगी मनुष्य, क्षीण-शरीर के योग्य किन्हीं भोगों को भोग सकता है, अतएव वह भोगी है और उनका त्याग करने से वह भोग-त्यागी है, इससे निर्जरा होती है और उससे देवलोक में उत्पन्न हो सकता है। ___ १९ प्रश्न-आहोहिए णं भंते ! मणसे जे भविए अण्णयरेसु Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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