SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११७४ भगवती सूत्र - श. ७ उ. ७ काम भोग १४ प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिक जीव, कामी हैं या भोगी हैं ? १४ उत्तर - हे गौतम! नैरयिक जीव, कामी भी हैं और भोगी भी हैं । इस प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक कहना चाहिये । १५ प्रश्न - हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कामी हैं, या भोगी हैं ? १५ उत्तर - हे गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव, कामी नहीं हैं, भोगी हैं । प्रश्न- हे भगवन् ! किस कारण से कहते हैं कि पृथ्वीकायिक जीव यावत् भोगी हैं ? उत्तर-- - हे गौतम! स्पर्शनेन्द्रिय की अपेक्षा वे भोगी हैं । इस प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक तक कहना चाहिये । बेइन्द्रिय जीव भी भोगी हैं, परन्तु वे जिव्हेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय की अपेक्षा भोगी हैं । तेइन्द्रिय जीव भी इसी तरह जानना चाहिये, किन्तु वे घ्राणेन्द्रिय, जिव्हेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय की अपेक्षा भोगी हैं । १६ प्रश्न - हे भगवन् ! चतुरिन्द्रिय जीव कामी हैं या भोगी हैं ? १६ उत्तर - हे गौतम! चतुरिन्द्रिय जीव कामी भी हैं और भोगी भी हैं। न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ? प्रश्न उत्तर - हे गौतम! चतुरिन्द्रिय जीव, चक्षुइन्द्रिय की अपेक्षा कामी हैं । घ्राणेन्द्रिय, जिव्हेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय की अपेक्षा भोगी हैं। शेष वैमानिकपर्यन्त सभी जीवों के विषय में औधिक जीवों की तरह कहना चाहिये । १७ प्रश्न - हे भगवन् ! कामभोगी, नोकामीनोभोगी और भोगी जीवों में कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? १७ उत्तर - हे गौतम! कामभोगी जीव सबसे थोडे हैं, नोकामीनोभोगी जीव उनसे अनन्तगुणे हैं और भोगी जीव, उनसे अनन्त गुणे हैं । विवेचन-रूप अर्थात् मूर्त्तता जिनमें हों, वे 'रूपी' कहलाते हैं और जिनमें न हो, वे 'अरूपी' कहलाते हैं । जो विशिष्ट शरीर स्पयं के द्वारा भोगे न जाते हों, किन्तु जिनकी ' केवल कामना - अभिलाषा की जाती हो, वे 'काम' कहलाते हैं । मनोज्ञ शब्द और संस्थान तथा वर्ण 'काम' कहलाते हैं । वे काम, पुद्गल धर्म होने से मूर्त हैं, अतएव रूपी हैं, किन्तु Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy