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________________ ९०२ भगवती सूत्र-श. ५ उ. ८ जीवों की हानि और वृद्धि द्रव्य से अप्रदेश पुद्गल ५००० हैं और क्षेत्र से अप्रदेश पुद्गल १०००० हैं, भाव से सप्रदेश पुद्गल ९९००० हैं, काल से सप्रदेश पुद्गल ९८००० हैं, द्रव्य से सप्रदेश पुद्गल ९५००० हैं और क्षेत्र से सप्रदेश पुद्गल ९०००० हैं। ऐसा होने से भाव अप्रदेशों की अपेक्षा काल अप्रदेशों में १००० बढ़ते हैं और वही १००० की संख्या भाव सप्रदेशों की अपेक्षा काल सप्रदेशों में कम हो जाती है । इसी तरह दूसरे स्थानों पर भी जान लेना चाहिये । इसकी स्थापना इस प्रकार है भाव से काल से द्रव्य से क्षेत्र से । अप्रदेश १००० २००० ५००० १०००० मप्रदेश ९९००० ९८००० ९५०. ० ९०.०० पूदगलों की यह एक लाख की संख्या, समझाने के लिये कल्पित की गई है। वास्तव में जिनेश्वर भगवान् ने तो अनन्त कही है। ____ जीवों को हानि और वृद्धि ४ प्रश्न-भंते !' त्ति भगवं गोयमे जाव-एवं वयासी-जीवा णं भंते ! किं वड्डंति, हायंति, अवट्ठिया ? ४ उत्तर-गोयमा ! जीवा णो वड्ढंति, णो हायंति, अवट्ठिया । ५ प्रश्न-णेरइया णं भंते ! किं वदंति, हायंति, अवट्ठिया ? ५ उत्तर-गोयमा ! णेरइया वड्ढंति वि, हायंति वि, अवट्टिया 'वि-जहा णेरड्या एवं जाव-चेमाणिया । ६ प्रश्न-सिद्धा णं भंते ! पुच्छा ? ६ उत्तर-गोयमा ! सिद्धा वड्दंति, णो हायंति, अवट्टिया वि । कठिन शब्दार्थ-वड्ढंति-बढ़ते हैं, हायंति-घटते हैं, अवट्ठिया-अवस्थित । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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