SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 530
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र - श. २ उ. ९ समय क्षेत्र फिर सामानि देव आदि परिवार सहित चमरेन्द्र सुधर्मा सभा में आते हैं । उनका सामानिक परिवार आदि सारा वर्णन कहना चाहिए । || दूसरे शतक का आठवां उद्देशक समाप्त ॥ शतक २ उद्देशक ₹ समय क्षेत्र ५२ प्रश्न - किमिदं भंते ! समयखेत्ते त्ति पवुच्चइ ? ५२ उत्तर - गोयमा ! अड्ढाइज्जा दीवा दो य समुद्दा एस णं एवइए समयखे तेत्ति. पवुच्चर, तत्थ णं अयं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीव - समुद्दाणं सव्वभंतरे, एवं जीवाभिगमवत्तब्वया नेयव्वा, जावअभिंतरं पुक्खरधं जोइसविहूणं । ॥ नवमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ ५११ विशेष शब्दों के अर्थ – समयखेत्ते – समय क्षेत्र = मनुष्य क्षेत्र, पबुच्चइ–कह लाता है, पुक्खर - पुष्करार्द्ध, एवइए - इतना, सव्वमंतरे - सर्वाभ्यन्तर । 'भावार्थ - ५२ प्रश्न - हे भगवन् ! समय क्षेत्र किसको कहते हैं ? ५२ उत्तर - हे गौतम! अढ़ाई द्वीप और दो समुद्र, यह समयक्षेत्र कहलाता है। इनमें जो यह जम्बूद्वीप नामक द्वीप है, यह सब द्वीप समुद्रों के बीचोबीच है । इस प्रकार जीवाभिग्रम सूत्र में कहा हुआ सारा वर्णन यहाँ कहना चाहिए यावत् आभ्यन्तर पुष्करार्द्ध तक कहना चाहिए, किन्तु उसमें से ज्योति - षियों का वर्णन यहाँ नहीं कहना चाहिए । विवेचन - आठवें उद्देशक में चमरचञ्चा राजधानी का वर्णन किया गया है । वह क्षेत्र सम्बन्धी वर्णन है । इसलिए क्षेत्र का अधिकार होने से इस नौवें उद्देशक में समयक्षेत्र सम्बन्धी वर्णन किया गया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy