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________________ ४९४ भगवती सूत्र-श. २ उ. ५ श्रमण सेवा का फल गाथा का अर्थ-१ पर्युपासना (सेवा)का फल श्रवण, २ श्रवण का फल ज्ञान, ३ ज्ञान का फल विज्ञान, ४ विज्ञान का फल प्रत्याख्यान, ५ प्रत्याख्यान का फल संयम, ६ संयम का फल अनाश्रवपन, ७ अनाश्रवपन का फल तप, ८ तप का फल व्यवदान, ९ व्यवदान का फल अक्रियपन, १० अक्रियपन का फल सिद्धि (मोक्ष)। विवेचन-पहले प्रकरण में साधु सेवा का वर्णन आया हैं। इसलिए अब साधु सेवा का फल बतलाया जाता है। .. 'तथारूप' का अर्थ है-जैसा वेश है वैसे गुणों वाला अर्थात् जिसके साधु का वेश है उसमें साधुता के गुण हों वह 'तथारूप' का श्रमण है। . .... 'श्रमण' का अर्थ है-साधु, तपस्वी। 'श्रमण' शब्द 'श्रमु खेदे तपसि च' इस धातु से बना है। जिसका अर्थ है-जो जगत् के जीवों के खेद को जानता है, समस्त संसार के प्राणियों को आत्म-तुल्य समझता है और जो तपस्या करता है वह 'श्रमण' है । उपलक्षण से उत्तर गुण धारण करने वाले को भी यहाँ श्रमण कहा है। ____ 'माहन' का अर्थ है-स्वयं हनन निवृत्तत्वात् परं प्रति ‘मा हन, मा हन वदति इत्येवंशील:' अर्थात् जो स्वयं किसी भी जीव को नहीं मारता और 'मत मारो, मत मारो' एसा जो दूसरो को उपदेश देता है, उसे 'माहन' कहते हैं । उपलक्षण से मूल गुणों वाले को माहन कहा गया है । अथवा 'श्रमण' का अर्थ है-साधु, और 'माहन' का अर्थ है-श्रावक । तात्पर्य यह है कि शुद्ध चारित्र पालन करने वाले श्रमण माहनों की पर्युपासना (सेवा, भक्ति तथा सत्संग) करने से उत्तरोत्तर दस फलों की प्राप्ति होती है । जो इस गाथा ' में बतलाया गया है सवणे जाणे य विण्णाणे, पच्चक्खाणे य संजमे। अणण्हए तवे चेव, वोदाणे अकिरिया सिद्धि ॥ अर्थ-१ सवणे (श्रवण)-शुद्ध चारित्र का पालन करने वाले श्रमण माहनों की पर्युपासना करने से श्रवण की प्राप्ति होती है अर्थात् साधु महात्मा धर्मकथा फरमाते हैं और शास्त्रों की स्वाध्याय किया करते हैं, इसलिए उनकी सेवा करने से शास्त्रों के श्रवण की प्राप्ति होती है। २ णाणे (ज्ञान)-शास्त्रों के सुनने से श्रुतज्ञान की प्राप्ति होती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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